हरे मटर देखो इठलाते।
हाथ किसी के अभी न आते।।
सर्दी में ये रौब दिखाते।
गर्मी में फिर से मुरझाते।।
खेतों में सब इसे लगाते।
बच्चे बूढ़े मिलकर खाते।।
भरा विटामिन इसके अंदर।
नहीं बचाते इसको बंदर।।
सब्जी का भी स्वाद बढ़ाते।
चटनी के सँग घुल मिल जाते।।
मंडी से इसको जब लाते
पकड़ पकड़ कर बच्चे खाते।।
हरे मटर होते गुणकारी।
ताकत मिलता हमको भारी।।
हमें एकता पाठ पढ़ाते।
रहना सब को साथ सिखाते।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम, गरियाबंद
छत्तीसगढ़