सुबह के भूले Srijan मार्च 12, 2022क्या लौटना होगा उस द्वीप पर जहाँ से नौका चली थी भूल कर तल्खियाँ मटमैला धूसर आसमान रास्ते कंटीले पथ अपरिचित मंज़िल भटकी हुई... Continue Reading
अग्निगर्भा हूँ मैं Srijan दिसंबर 15, 2021 उपलों की आग पर जलती लकड़ियां खदकती दाल सिकती रोटियां जलती आंखें धुएं से फिर भी नित्यप्रति वही दोहराव क्या कभी नहीं सोचती माँ ... Continue Reading
एक घटना Srijan दिसंबर 15, 2021 उत्ताल तरंगों की तरह फैल गया है मेरे मन पर सराबोर हूँ मैं उल्लसित हूँ झाग बन उफन रहा है जल की सतह पर धरा के छोर पर छोड... Continue Reading