सुबह के भूले

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क्या लौटना होगा

उस द्वीप पर

जहाँ से नौका चली थी

भूल कर तल्खियाँ

मटमैला धूसर आसमान

 

रास्ते कंटीले

पथ अपरिचित

मंज़िल भटकी हुई

 

चूक रही अब उम्मीदें

अपना उत्स पाने की

उम्र का प्रौढ़ होना

वहन करना बोझिल कर्तव्य

 

ऐसे में लौटना ही पड़े

गंदगी से पटे

सुविधा-रहित द्वीप पर

तब भी

बहुत घाटे का नहीं

यह करार

 

अच्छा है ताउम्र भटकने से

लौटना अपने ही शहर.

 

शैलेंद्र चौहान

34/242, प्रतापनगर,

सेक्टर-3, जयपुर,

राजस्थान- 303033

 

  

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