श्यामल मेघ

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ओ नभचर जलपूर्ण श्यामले,

अल्हड़, उन्मत्त मेघ बाबले !

 

धवल हिमालय धाने वाले,

रजत तुहिन बरसाने वाले,

 वसुधा तृप्त कराने वाले,

विरही विरह बढ़ाने वाले।

आते मेघ उदधि जल भरकर,

छा जाते घन- वन से नभ पर, 

अमृत बूँद सहज बरसाते,

तृप्त, अमरता लघु तृण पाते।

घिर आए हैं मेघ सजल दल,

वसुधा बैठी नव दुल्हन बन,

सावन बूँद बरसते प्रतिक्षण,

पुलकित प्रकृति हर्षित जन- जन।

 

ऐसी ही एक रम्य शाम थी,

भरा हुआ था शून्य मेघ से,

विंध्याचल के तुंग शिखर पर,

कालिदास का विरही नायक,

बैठा था चुपचाप अकेला,

देख रहा था मंत्रमुग्ध हो,

बादल की आबाजाही को,

सहसा एक बूँद जलधर से,

गिरा अधर उस विरही यक्ष के,

प्रेमोन्मत अभिशप्त यक्ष ने,

बना दूत श्यामल वारिद को,

भेजा हिमगिरी अलकापुरी को।

घिर आए हैं अभ्र मेघ फिर,

लेकर रिमझिम अल्हड़ बुँदे.

प्रणय निवेदन भेजो उनको,

लूटी जिसने तेरी नींदे।

 

             

गौतम पाण्डेय

उच्चतर माध्यमिक शिक्षक

 बिहार 

  

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