ज़िन्दगी एक पहेली

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अंतर्मन से उठी एक अनकही अनसुनी आवाज।

ह्रदय पटल को झकझोर दिया उसने आज।

 

जिंदगी एक पल अनबुझी सी पहेली लगी।

न मन की मीत, न ही वो  सखी सहेली लगी।

 

कभी वो मेरी बेबसी पर मुस्कुराई ठिठलाई।

तो एक ही पल में देखते देखते मुरझा गई।

 

कभी मन बादलों पर बन काली घटा सी छाई।

कभी बना राहों को आसान उमड़ती आई।

 

कभी बन अरमानों का गुलदस्ता महकाई।

कभी प्रेम हो सराबोर गगन में उड़ने को फड़फड़ाई।

 

कभी दिया  बना राहों को  आसान इतराई।

तो कभी बन पत्थर सी कठोर ली समुंद की गहराई।

 

जिंदगी तेरी ये फिदरत मुझे तो समझ न आई।

तू सदैव एक अनबुझी सी पहेली मुझे लगी।

 

जितना की तुझे सुलझाने की मैने कोशिश ।

उतना तो ज्यादा तो उलझती ही चली गई।

 

तेरी सुलझाई राह पर न मिला।मुझे कोई मुकाम।

न ही मिल सका कोई सरल सा प्यारा पैगाम।।

 

अंजनी 'ओजस्वी '

कानपुर नगर उत्तरप्रदेश

 

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