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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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रविवार, 25 दिसंबर 2022

भारतीय शैक्षिक ज्ञान परम्परा का शाश्वत स्वरुप

 


   भारतीय ज्ञान परंपरा अद्वितीय ज्ञान और प्रज्ञा का प्रतीक है जिसमें ज्ञान और विज्ञान, लौकिक और पारलौकिक, कर्म और धर्म तथा भोग और त्याग का अद्भुत समन्वय है। ऋग्वेद के समय से ही शिक्षा प्रणाली जीवन के नैतिक, भौतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक मूल्यों पर केंद्रित होकर विनम्रता, सत्यता, अनुशासन, आत्मनिर्भरता और सभी के लिए सम्मान जैसे मूल्यों पर जोर देती थी। वेदों में विद्या को मनुष्यता की श्रेष्ठता का आधार स्वीकार किया गया था (ऋग्वेद, 10/71/7)। छात्रों को मानव, प्राणियों एवं प्रकृति के मध्य संतुलन को बनाए रखना सिखाया जाता था। शिक्षण और सीखने के लिए वेद और उपनिषद् के सिद्धांतों का अनुपालन जिससे व्यक्ति स्वयं, परिवार और समाज के प्रति कर्तव्यों को पूरा कर सके, इस प्रकार जीवन के सभी पक्ष इस प्रणाली में सम्मिलित थे।

शिक्षा प्रणाली  ने सीखने और शारीरिक विकास दोनों पर ध्यान केंद्रित किया। कर्म वही है जो बंधनों से मुक्त करे और विद्या वही है जो मुक्ति का मार्ग दिखाए। इसके अतिरिक्त जो भी कर्म हैं वह सब निपुणता देने वाले मात्र हैं (विष्णु पुराण, 1/9/41)। शिक्षा के इस संकल्प को भारतीय परंपरा में अंगीकृत कर तदनुरूप ही विश्वविद्यालयों और गुरुकुलों में शिक्षा दी जाती थी। घर, मंदिर, पाठशाला तथा गुरुकुल में संस्कार युक्त स्वदेशी शिक्षा दी जाती थी। उच्च ज्ञान के लिए छात्र विहार और विश्वविद्यालयों में जाते थे तथा शिक्षण अधिकतर मौखिक था, छात्रों को कक्षा में जो विषय पढ़ाया जाता था उसको वो याद कर मनन करते थे।

प्राचीन काल की शिक्षा प्रणाली ज्ञान, परंपराएं और प्रथाएं मानवता को प्रोत्साहित करती थीं। पुराण में ज्ञान को अप्रतिम माना गया है (ब्रह्माण्ड पुराण, 1/4/15)। भारत के तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, बल्लभी, उज्जयिनी, काशी आदि विश्व प्रसिद्ध शिक्षा एवं शोध के प्रमुख केन्द्र थे तथा यहां कई देशों के शिक्षार्थी  ज्ञानार्जन के लिए आते थे। वैदिक काल में महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रसिद्धि थी जिसमें मैत्रेयी, ऋतम्भरा, अपाला, गार्गी और लोपामुद्रा आदि जैसे नाम प्रमुख थे। बोधायन, कात्यायन, आर्यभट्ट, चरक,  कणाद, वाराहमिहिर, नागार्जुन, अगस्त्य, भर्तृहरि, शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद जैसे अनेकानेक महापुरुषों ने भारत भूमि पर जन्म लेकर अपनी मेधा से विश्व में भारतीय ज्ञान परंपरा के समिद्ध हेतु अतुल्य योगदान दिया है। गुरुकुल शिक्षा के प्रमुख आधार स्तम्भ थे। शिक्षार्थी अठारह विद्याओं – छः वेदांग, चार वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वेद), चार उपवेद (आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्व वेद, शिल्पवेद), मीमांसा, न्याय, पुराण तथा धर्मशास्त्र का अर्जन गुरु के निर्देशन में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अनुष्ठानपूर्वक अभ्यास कर सम्पादन करते थे जिससे आजीविका निर्वहन में कोई परेशानी नहीं होती थी तथा प्रौढ़ावस्था तक आते-आते अपने विषय के निपुण ज्ञाता बन जाते थे। त्याग, वृत्तिसम्पन्न तथा धन की तृष्णा से परे आचार्य ही भारतीय शिक्षा पद्धति में शिक्षक माना गया है।

शिक्षा को व्यवसाय और धनार्जन का साधन नहीं माना जाता था। वायु पुराण (77/128) में उल्लेख है कि गुरु रूपी तीर्थ से सिद्धि प्राप्त होती है तथा वह सभी तीर्थों से श्रेष्ठ है। प्राचीन भारतीय सनातन ज्ञान परंपरा अति समृद्धि थी तथा इसकाउद्देश्य धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को समाहित करते हुए व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व को विकसित करना था। जब सारा विश्व अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता था तब सम्पूर्ण भारत के मनीषी उच्चतम ज्ञान का प्रसार करके मानव को पशुता से मुक्त कर, श्रेष्ठ संस्कारों से युक्त कर संपूर्ण  मानव बनाते थे। प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान और विचार की समृद्ध परंपरा के आलोक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 तैयार की गई है। ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज को भारतीय विचार परंपरा और दर्शन में सदा सर्वोच्च लक्ष्य माना जाता था। प्राचीन भारत में शिक्षा का लक्ष्य सांसारिक जीवन अथवा स्कूल के बाद के जीवन की तैयारी के रूप में ज्ञान अर्जन नहीं बल्कि पूर्ण आत्म ज्ञान और मुक्ति के रूप में माना गया था।

भारत द्वारा 2015 में अपनाए गए सतत् विकास एजेंडा 2030 के लक्ष्य चार में परिलक्षित वैश्विक शिक्षा विकास योजना के अनुसार विश्व में 2030 तक सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन पर्यंत शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने का लक्ष्य है। इस हेतु संपूर्ण शिक्षा प्रणाली को समर्थन और अधिगम को बढ़ावा देने के लिए पुनर्गठित करने की आवश्यकता होगी ताकि सतत् विकास के लिए 2030 एजेंडा के सभी महत्वपूर्ण लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार 2040 तक भारत के लिए एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य होगा जो कि किसी से पीछे नहीं है। ऐसी शिक्षा व्यवस्था जहां किसी भी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से संबिंधत शिक्षार्थियों को समान रूप से सर्वोच्च गुणवत्ता की शिक्षा उपलब्ध हो सकेगी। यह 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति है जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है तथा भारत की परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार को बरकरार रखते हुए, 21वीं सदी की शिक्षा के लिए आकांक्षात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करना है।

राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय संवैधानिक मूल्यों एवं मौलिक दायित्वों से युक्त एक ऐसी शिक्षा नीति है जो देश के साथ जुड़ाव और बदलते विश्‍व में नागरिक की भूमिका और उत्तरदायित्वों की जागरूकता उत्पन्न करने पर बल देती है। इस नीति की अंतर्दृष्‍ट‍ि में विद्यार्थियों में भारतीय होने का गर्व न केवल विचार में, बल्कि व्यवहार, बुद्धि और कार्यों में और साथ ही ज्ञान, कौशल, मूल्यों और सोच में भी होना चाहिए, जो मानवाधिकारों, स्थायी विकास और जीवनयापन तथा वैश्‍विक कल्याण के प्रतिबद्ध हो, ताकि सही मायने में वे वैश्‍विक नागरिक बन सकें। राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ई.सी.सी.ई.) में निवेश एवं इसकी पहुँच देश के सभी बच्चों तक सुनिश्‍च‍ित करना, प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा में लचीली, बहुआयामी, खेल, गतिविधि एवं खोज आधारित शिक्षा का समावेशन करना, प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के लिए एक उत्कृष्‍ट पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढाँचा विकसित करना प्रमुख प्रावधान हैं। इसके अलावा विस्तृत और सशक्‍त संस्थानों द्वारा ई.सी.सी.ई. प्रणाली को लागू करन, मध्याह्न भोजन कार्यक्रम तथा स्वास्थ्य के विकास की निगरानी एवं जाँच-परीक्षण की उपलब्धता सुनिश्‍च‍ित करना आदि प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा से संबंधित कुछ ऐसे प्रमुख प्रावधान हैं जो इसे न केवल अपने आप में एक विशिष्‍ट एवं महत्वपूर्ण शिक्षा नीति बनाते हैं, अपितु प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा को एक मज़बूत आधार भी प्रदान करते हैं।

शिक्षा मानवीय क्षमताओं को प्राप्‍त करने, न्यायसंगत एवं न्यायपूर्ण समाज की स्थापना एवं विकास तथा राष्‍ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के संदर्भ में एक मूलभत आवश्यकता है। शिक्षा ही वह माध्यम है जिससे कि देश की समृद्ध प्रतिभा तथा संसाधनों का सर्वोत्तम विकास और संवर्द्धन व्यक्‍त‍ि, समाज, राष्‍ट्र और विश्‍व अर्थात मानवता की भलाई के लिए किया जा सकता है। इसी संदर्भ में भारत की राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020, भारत की 21वीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है, जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओ को पूर्ण करना है। सबके लिए आसान पहुँच, समानता, गुणवत्ता और जवाबदेही के आधारभूत  स्तंभों पर निर्मित यह नई शिक्षा नीति सतत विकास के लिए एजेंडा 2030 केअनुकूल है और इसका उद्देश्य 21वीं शताब्‍दी की आवश्यकता के अनुकूल विद्यालयी और महाविद्यालयी शिक्षा को अधिक समग्र और लचीला बनाते हुए भारत को एक ज्ञान आधारित जीवंत समाज और ज्ञान की वैश्‍व‍िक महाशक्‍त‍ि में बदलना तथा प्रत्येक विद्यार्थी में निहित अद्वितीय क्षमओं को सामने लाना है।

राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति प्रत्येक व्यक्‍त‍ि में निहित रचनात्मक क्षमताओं के  विकास पर विशेष ज़ोर देती है तथा यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि शिक्षा से न केवल साक्षरता और संख्या ज्ञान जैसी ‘बुनियादी क्षमताओं’  के साथ-साथ ‘उच्चतर स्तर’ की तार्किक और समस्या-समाधान संबंधी संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास होना चाहिए, बल्कि नैतिक, सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर भी व्यक्‍त‍ि का विकास होना आवश्यक है। इस शिक्षा नीति में वर्तमान में सक्रिय 10+2 के शैक्षिक मॉडल के स्थान पर शैक्षिक पाठ्यक्रम 5+3+3+4 प्रणाली के आधार पर विभाजित करने की बात कही गई है। बचपन की देखभाल और शिक्षा पर ज़ोर देते हुए विद्यालयी पाठ्यक्रम के 10+2 ढाँचे की जगह 5+3+3+4 की नई पाठ्यक्रम संरचना लागू की जाएगी जो क्रमशः 3–8, 8–11, 11–14, और 14–18 उम्र के बच्चों के लिए है। इस नीति में अब तक दूर रखे गए 3–6 साल के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है। इस राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति में तकनीकी शिक्षा, भाषा बाध्यताओ को दूर करने,  दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए शिक्षा को सुगम बनाने आदि के लिए तकनीकी के प्रयोग को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्‍त इसमें विद्यार्थियों में रचनात्मक सोच, तार्किक निर्णय, सतत सीखते रहने की कला और नवाचार की भावना को प्रोत्साहित करने पर भी बल दिया गया है।

राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीयता’ विषय में एक महत्वपूर्ण शब्द है— ‘भारतीयता’। यह भारतीयता क्या है? इसे समझना बहुत ज़रूरी है। ‘भारतीयता’ शब्द भारत से बना है। भारत में विविध भाषाओं, क्षेत्र, भौगोलिक संस्कृति, जनजीवन, खान-पान, वेशभूषा आदि के बावजूद एक खास बात दिखाई पड़ती है, वह है हमारी जीवन दृष्‍टि, जिसमें आध्यात्मिकता का पुट रहता है। यानी हमारी भारतीय जीवन दृष्टि, ‘आध्यात्मिक’ जीवन दृष्‍टि है। हमारे यहाँ कहा गया है—“ईशा वास्यमिदंसर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत।”  यानी एक ही चैतन्य सभी चर-अचर में समान रूप से विद्यमान है। सबमें समान दृष्‍टि है। इसीलिए हमारा महाभाव है, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया’ अर्थात् जो ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ का भाव वाक्य है, यही भारतीयता का भाव है, ‘सबका कल्याण। व्यष्‍टि से लेकर समष्‍टि का कल्याण।’ जो आगे चलकर सम्पूर्ण सृष्‍टि के साथ-साथ परमेश्‍वर तक जुड़ता है। मनमोहन वैद्य (2018) के शब्दों में, “व्यष्‍टि, समष्‍टि, सृष्‍टि और परमेष्‍ठी ये क्रमशः स्पाइरल की तरह विस्तृत होने वाली इकाइयाँ हैं।” यही असली भारतीयता है। दुनिया के किसी भी दर्शन में आपको यह भाव नहीं मिलते हैं। राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीयता का यह महाभाव, अलग-अलग तरीकों से, भिन्न-भिन्न रूपों में प्रारंभ से लेकर अंत तक दिखाई पड़ता है। राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के पहले अध्याय ‘परिचय’ में लिखा गया है कि ‘शिक्षा के द्वारा व्यक्‍ति का कल्याण और उसकी पूर्ण क्षमता का विकास’। यह समाज-कल्याण और राष्‍ट्र के कल्याण से जुड़ा हुआ है। शिक्षा सम्पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्‍त करने, एक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज के विकास और राष्‍ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभत आवश्यकता है। पहली बार संभवतः यह बात किसी शिक्षा नीति में कही गई है। व्यक्‍ति के कल्याण से तात्पर्य, केवल उसके आर्थिक कल्याण से नहीं है। भौतिक उपलब्धि तो चाहिए ही चाहिए, लेकिन भौतिकता अपने आप में समग्र वस्तु नहीं है। भौतिकता के साथ-साथ कुछ जीवन मूल्य भी आवश्यक हैं। चरित्र का निर्माण आवश्यक है। राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में, पहली बार यह रेखांकित किया गया है कि विद्यार्थियों में जीवन मूल्यों को प्रवेश कराना है। यानी चरित्र निर्माण,  राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की महत्वपूर्ण विशेषता है। “शिक्षा से चरित्र निर्माण होना चाहिए, शिक्षार्थियों में नैतिकता, तार्किकता, करुणा और संवेदनशीलता विकसित करनी चाहिए।” व्यक्‍ति का कल्याण, भौतिकता के साथ-साथउसके चरित्र निर्माण से ही संभव होगा। जीवन में संघर्ष करने की शक्‍ति, सामूहिकता का भाव, दूसरों  के प्रति संवेदनशीलता, यह सब व्यक्‍ति के निर्माण के लिए आवश्यक हैं। यह पाठ्यक्रम के स्तर पर भी हो सकता है और दूसरा व्यावहारिक क्रियाकलाप के स्तर पर भी। व्यावहारिक क्रियाकलाप यानी हमारी जो शिक्षेत्तर गतिविधियाँ होंगी, इसके माध्यम से भी जीवन मूल्यों की शिक्षा दी जाएगी। भारतीयता के संदर्भ में एक अगला महत्वपूर्ण  बिंदु है—हमारी शिक्षा का प्रतिमान। अंग्रेज़ी राज में मैकाले (1835) की जो शिक्षा नीति आई थी, उसने पूरी भारतीय शिक्षा पद्धति के प्रतिमान को बदल दिया था। कर्म, भारतीय शिक्षा पद्धति का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करता था। हमारी शिक्षा पद्धति जीवन और कर्म से कभी विमुख नहीं रहे। याद करें कि गुरुकुल पद्धति में अध्ययन, जीवन और कर्म में सामंजस्य होता था। अध्ययन का अर्थ केवल ज्ञान अथवा पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं हुआ करता था, बल्कि जीवन का ज्ञान हुआ करता था। लेकिन मैकाले के मिनट्स (1835) ने इस महत्वपूर्ण मूल्य को खत्म कर दिया था। ज्ञान और कर्म का ऐक्य, भारतीय परंपरा की पुरानी पद्धति रही है।

रामायण-महाभारत कालीन प्राचीन कहानियों में बताया गया है कि राजकुमारों को भी आश्रम में रहना पड़ता था, वे भी उन सारे कामों को करते थे, जो एक आम विद्यार्थी को करना पड़ता था। श्रम से संबंधित सभी कार्य; चाहे जंगल से लकड़ी लाना हो, या कृषि संबंधित कार्यों में सहायता करनी हो, या श्रम से संबंधित अन्य कार्य हों सभी कार्य विद्यार्थि‍यों को करने पड़ते थे। कृष्ण और सदुामा भी जंगल में लकड़ी लेने गए थे। इसी तरह के अनेक उदाहरण हमें मिलते हैं। यानी कर्म हमारी ज्ञान पद्धति का एक बड़ा हिस्सा हुआ करता था। इसे मैकाले मिनट (1835) ने खत्म कर दिया। इस बात को आज़ादी की लड़ाई के समय ही महसूस किया गया और इस पर चर्चा भी शुरू  हुई थी। उसी को ध्यान में रखकर आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने कर्म के सिद्धांत को फिर से वापस लाने का प्रयत्न किया। शिक्षा में वह कर्म को समाविष्‍ट करने की बात करते हैं, कर्म की महत्ता को स्थापित करने का प्रयास करते हैं। वे कहते हैं, “ मेरी राय है कि चूंकि हमारा अधिकांश समय अपनी रोज़ी कमाने में लगता है, इसलिए हमारे बच्चों को बचपन से ही इस प्रकार के परिश्रम का गौरव सिखाना चाहिए।” (गांधी, 1960) वे एक अन्य जगह पर कहते हैं, “शिक्षा की मेरी योजना में हाथ से लिखना सीखने के पहले औजार चलाना सीखेंगे।” (गांधी, 1960) परन्तु दुर्भाग्य है कि आज़ादी के बाद हमारी शिक्षा नीतियों में कर्म पर ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया गया। थोड़ी बहुत वोकेशनल ट्रेनिंग की बात होती रही, लेकिन वह भी खानापूर्ति होकर रह गई। इस अभाव को राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में दूर  करने की कोशिश की गई है।

छठी क्लास से ही वोकेशनल ट्रेनिंग की शुरुआत  हो जाएगी और महत्वपूर्ण बात यह है कि इस ट्रेनिंग में केवल छोटे-मोटे काम ही नहीं सिखाए जाएँगे, बल्कि सभी प्रकार के कामों का प्रशिक्षण दिया जाएगा। यहाँ तक कि लेटेस्ट सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी और कोडिंग जैसे कौशल भी सिखाए जाएँगे, जो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आने वाले समय का भविष्य हैं। अहम बात यहाँ यह है कि यह केवल स्कूल के स्तर पर ही नहीं, कॉलेज के स्तर पर भी होगा। आज हमारे युवा स्नातक करके निकलते हैं और उन्हें कोई राह दिखाई नहीं पड़ती है। वह भटकते हैं और कभी मैनेजमेंट का, तो कभी मार्केटिंग, तो कभी कंप्यूटर का कोई कोर्स करने लग जाते हैं। यानी उन्हें कोई भविष्य नहीं दिखाई पड़ता है।

राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में, इस कमी को दूर करने के लिए पूरा प्रयास किया गया है। विकसित देशों यानी अमेरिका, जर्मनी, कोरिया, जापान, फ्रांस में 19 से 24 साल का जो कार्यबल है, युवा समूह है, उसमें 50 से लेकर 95 प्रतिशत लोगों को व्यावसायिक शिक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता है। जबकि भारत में केवल पाँच प्रतिशत लोग वोकेशनल ट्रेनिंग प्राप्‍त करते हैं। राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का लक्ष्य है कि 2025 तक कम से कम 50 प्रतिशत लोगों को वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाए। यदि ऐसा होता है, तो हम अपनी भारतीयता की पुनर्खोज कर पाने में सफल होंगे। हमें केवल देश के महानगरों के बारेमें ही नहीं सोचना है, बल्कि हमें देश के ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों और वहाँ के लोगों के बारे में भी सोचना है। नई राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 पर आधारित शिक्षा हर साल रोज़गार माँगने वालों की एक बड़ी खेप तैयार कर रही है। जबकि राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक नया मॉडल प्रस्तुत  करती है, जो रोज़गार माँगने वालों की जगह रोज़गार देने वालों की खेप पैदा करने पर बल देती है। सभी लोग रोज़गार देने वाले नहीं भी बन पाए, तो भी कम से कम हम स्वरोज़गार की तरफ़ ज़रूर आगे बढ़ेंगे। यह शिक्षा नीति इस मामले में भारतीयता की पुनर्खोज करती है।

 

डॉ0 दिनेश कुमार गुप्ता

प्रवक्ता, अग्रवाल महिला शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय

गंगापुर सिटी, सवाई माधोपुर

(राजस्थान) 322201

दूरभाष: 9462607259

Mail: dineshg.gupta397@gmail.com

 

सन्दर्भ सूची

1 वैद्य, मनमोहन (2018) “भारत की भारतीय अवधारणाविमर्श प्रकाशन, नयी दिल्ली

2 गाँधी, महात्मा (1960) “मेरे सपनों का भारतनवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद

3 राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय (2020) “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020” राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय, जयपुर

4 कुमार, निरंजन (2020) “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीयता” भारतीय आधुनिक शिक्षा, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद्, नई दिल्ली, वर्ष-41, अंक-02, अक्टूबर, 2020

 

 

 

 

 

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