ग़ज़ल

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भगवान भी उन रिश्तों को ठीक नहीं कर सकते हैं।

जहां आज की लड़ाई में अतीत के मुद्दे उठते है।

 

फितरत पर अक्सर गौर किया है मैने लोगो की

चेहरे पर  धूल  हो जिनके, आईना साफ  वही करते हैं।

 

हर मसले का हल हो सकता है  बातों से

पर अपनो से अपनी बाते ही हम कम करते हैं।

 

सबको ही सच  प्यारा है सबको ही सच सुनना है

पर अपनी बारी आने पर सच कहने से हम डरते हैं

 

ठोकर लगने पर गिरते इंसानों को सबने देखा था

अब गिरती इंसानियत के किस्से सब कहते हैं।

 

पहले प्यार में जीते थे प्यार में मरते थे

अब प्यार  में यार के पैंतीस टुकड़े करते हैं।

प्रज्ञा पाण्डेय  ‘मनु’

वापी गुजरात

 

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