हाँ मैं पुरुष हूँ..!!
ब्रह्म रूप परम् सत्ता
अखण्ड शिव ब्रह्मांड
नायक सत्यम शिवम्
सुंदरम प्रणेता मैं ही हूँ
हाँ मैं पुरुष हूँ..!!
अतः करना पड़ता है मुझे
समय समय पर विषपान
जब सोख लेता हूँ विश्व की
समस्त पीड़ा को
नील कंठ कहलाता हूँ
हाँ मैं पुरुष हूँ..!!
श्रृंगीनिनांद कर्णभेदन उच्छ्वास
डमरू की लयताल पर
शिवतांडव नर्तनआधिकारिक योगी
काशी राज मैं ही शिव हूँ
हाँ मैं पुरुष हूँ..!!
स्वीकार नहीं अनङ्ग धृष्ठता
खुल जाते हैं तृतीय नेत्र मेरे
पुनश्च छिपा लेता हूँ अपनें दुःख दर्द
हृदय की अन्तर्ज्वालाओं में
मौन स्वीकार कर
समाधिस्थ हो जाता हूँ
हाँ मैं पुरुष हूँ..!!
परम् तपस्वी मैं समस्त चराचर
सती सतीत्व रक्षार्थ निरन्तर
विश्व कल्याणार्थ चिरन्तर
शमसान से लेकर हिमप्रदेश
तक विजय भ्रमण करता हूँ
हाँ मैं पुरुष हूँ..!!
विजय लक्ष्मी पाण्डेय
आजमगढ़ उत्तर प्रदेश