ज़िन्दगी का खेल

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एक दो पल का नहीं

इक मुसलसल चलने वाला खेल है

ये जिंदगी का खेल भी .. !!

 

हारें तो फिर बेचैनियाँ

जीतें तो ये शाबाशियाँ...

दुश्वारियाँ , हेरानियाँ , नादानियाँ

सभी हिस्से हैं इसके ,

इस सुहाने खेल से ,

लंबे सफर के दौड़ से

डरता नहीं अब मेरा दिल .. !! 

 

तैयार है बस थामने को जीत का परचम

किसी भी दौड़ से , लंबे सफर से

डरता नहीं अब मेरा दिल ..

                          - दीप्ति अदीबा फैजाबादी

 

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