नवसृजन का जश्न

सृजन
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 हमारी हथेलियों में

कर्म की निश्चित सम्भावनाएं

और मुट्ठियों में अपेक्षाकृत

परिणाम बन्द हैं

 

मन के कंधों पर

सवार होकर

हमारा संघर्ष , परिश्रम, बहाव,

सपने, आस्था, विश्वास और

निरन्तर

चलते रहने के प्रयास से

कुछ अलौकिक

परिणामों के साथ

जश्न मनाते जीत के

 

इंसान जब इंसान के गले

निःसंकोच मिलेगा

पाखंड, दम्भ सब

जलकर हो जाएंगे राख

ईर्ष्या, द्वेष, ऊँच-नीच

ये नहीं है मानवता के प्रतीक

घोषित जिस दिन से

ये फिर से पाप हो जाएंगे

उम्मीदों का सूरज तपकर

देगा एक सम्बोधन नया

छूट चुकी आस्थाएं

पुनर्जीवित होकर

जश्न मनाएगी नव-सृजन का

फूटेंगे फिर गीत नये

विश्वास के, संवेदनाओं के!

-राजकुमार जैन ’राजन

आकोला, राजस्थान

 

 

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