भय के किवाड़ डर के ताले
अपने आप ही खुल जाते हैं
कपट के साये पहरा बैठे
ले जम्हाई सो जाते हैं ।
रात डरावनी काली काली
बिजुरी कुछ ना कर पाती है
जब जन्मते कृष्ण मुरारी
उमड़ी यमुना उतर जाती है ।
कठिनाइयां सब देती मारग
सत्य की सत्ता जब गाती है
अहम की झूठी कठपुतलियां
कंस के जैसे पछताती है ।
- व्यग्र पाण्डेय
कर्मचारी कालोनी,
गंगापुर सिटी, स.मा.
राजस्थान