कृष्ण जन्म

सृजन
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भय के किवाड़ डर के ताले

अपने आप ही खुल जाते हैं

कपट के साये पहरा बैठे

ले जम्हाई सो जाते हैं ।

 

रात डरावनी काली काली

बिजुरी कुछ ना कर पाती है

जब जन्मते कृष्ण मुरारी

उमड़ी यमुना उतर जाती है ।

 

कठिनाइयां सब देती मारग

सत्य की सत्ता जब गाती है

अहम की झूठी कठपुतलियां 

कंस के जैसे पछताती है ।

               - व्यग्र पाण्डेय

कर्मचारी कालोनी,

गंगापुर सिटी, स.मा.

    राजस्थान

                  

 

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