बादल देखो करता शोर
बन में नाच उठा है मोर।
छमक छमक कर पंख पसारे
लगते देखो कितनें प्यारे।।
हवा चली पुरुवाई जोर
खुशियाँ छाई चारो ओर।
ताल तलैया नदी नाल सब
हरे भरे दीखते हैं सारे।।
बच्चे ताली ख़ूब बजाए
मोर देख कर नाचे गाए।
बीन बीन कर पंख भी लाए
अम्माँ से पंखी बनवाए।।
कुछ झोले में रखकर अपनें
ले स्कूल साथ में जाते।
और वहाँ दिखला दिखला कर
सभी दोस्त को खूब लुभाते।।
कृष्ण चन्द्र के मोर मुकुट पर
पंख मोर की भी लगवाए।
मोर देखकर खिल गये बच्चे
हर्षित "विजय" सदा मन भाए।।
__विजय लक्ष्मी पाण्डेय
स्वरचित मौलिक रचना
आजमगढ़ ,उत्तर प्रदेश