शिक्षक : समाज का दर्पण

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        संसार के किसी भी समाज का निर्माण शिक्षक पर निर्भर करता है। सुसभ्य समाज की कल्पना उसमें रहने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण से ही सम्भव है। जन्म से ही शिशु सर्वप्रथम अपनी माँ के सम्पर्क में आता है। माँ के व्यवहार एवं विचारों का बच्चे पर गहरा प्रभाव पड़ता है। माँ ही व्यक्तित्व निर्माण की पहली सीढ़ी होती है। तत्पश्चात् बच्चा पाठशाला / विद्यालय में प्रवेश करता है। बच्चे के मन-मस्तिष्क पर विद्यालय के वातावरण, दूसरे छात्रों के व्यवहार एवं शिक्षक आचार-विचार तथा व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव पड़ता है।

छात्र / बच्चे के विदयालयी जीवन में शिक्षक की अहम् ‌भूमिका होती है। शिक्षक की वेशभूषा , आचरण, परस्पर व्यवहार, आदि पर छात्र दृष्टि रखते हैं जिससे छात्र शिक्षक को अपना शैल भाषा मॉडल मानने लगते हैं। समाज में शिक्षक न हो तो बच्चे / छात्र का जीवन अंधकारमय हो जाए। शिक्षक को सबसे पहले अपने दुर्गुण या गलत व्यवहार त्यागना पड़ता है, तभी वह छात्रों को उपदेश देने का अधिकारी बन जाता है। मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ अच्छा कार्य सीखता रहता है। सीखने के लिए शिक्षक / प्रशिक्षक की जरूरत होती. है। शिक्षक का स्थान केवल विद्यालय | महाविद्यालय तक ही सीमित नहीं है बल्कि जो भी आपको सद् ‌शिक्षा दे, वही आपका गुरु बन जाता है। जिसने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करली हो, वही गुरू कहलाने योग्य है। संत कबीरदास जी ने गुरु की महत्वा इस प्रकार प्रकट की है: " सत्गुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगारलोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावृणहार ॥”.

जो सच्चाई का मार्ग दिखाकर धर्म के मार्ग पर चलने को अग्रसर करे एवं अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर दे, उसे ही गुरु अर्थात् शिक्षक की संज्ञा दी जा सकती है।शिक्षक समाज का दर्पण होता है। जैसा शिक्षक, वैसा समान । कहा भी गया है: "गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय । बलिहारी गुरु आपणे जिन गोविन्द दियो बताय ॥” गुरु ही अच्छाई के मार्ग पर चलाता है एवं ईश्वर से परिचय कराता है। सीखने की कोई विशेष उम्र नहीं होती। अपने उद्देश की प्राप्ति हेतु शिक्षक / गुरु का दामन पकड़ना पड़ता है। " बलिहारी गुरु आपने, धोहाड़ी के बार। जिनि मानुष तै देवता, करत न लागी बार ॥ " शिक्षक पशुवत् व्यवहार को मानवीय गुणों से सराबोर कर देता है। आज के परिवेश में कुछ शिक्षक निजी विद्यालयों में शिक्षण कार्य करते हैं, तो कुछ सरकारी स्कूलों में | कुछ शिक्षक केवल वेतन पाना ही अपना ध्येय मानते हैं जो कि सर्वथा गलत है। जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। ईश्वर का सॉफ्टवेयर बहुत मजबूत है, पड़े ही धरती के कम्प्यूटर

सॉफ्टवेयर खराब हो जाए हमारी शिक्षकों की संताने भी तभी तरक्की करेगी, जब हम दूसरों की संतानों को पूर्ण ईमानदारी तथा निष्ठा से शिक्षित करेंगे । इसलिए जरूरी है कि हम सभी शिक्षक, शिक्षक-पद की गरिमा बनाए रखें | तथा समाज को नवजीवन प्रदान करें।

रुचि शर्मा (सहायक अध्यापक)

 कम्पोजिट स्कूल डुन्डूखेड़ा काँधला, शामली (उत्तर प्रदेश)

 

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