मेघदूत

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    महा कवि कालिदास का परिचय देना आदित्य को दिया दिखा पथ दर्शन सा लगेगा।लेकिन मेघदूत की उत्पत्ति के पीछे भी एक कथा हैं।

    कुबेर जो धन के देवता हैं वे शिवजी के परम भक्त थे।रोजाना ब्रह्म मूरत में 108 कमलों से वे शिवजी की पूजा अर्चना करते थे।ये नियम का जीवन पर्यंत निर्वाह करने का व्रत था उनका।अब वे तो हुए ही कुबेर तो कमल चुन ने तो खुद जायेंगे नहीं तो यक्ष जो उनकी सेवा में रहता था उसे  कमल को मानसरोवर से ला कर उनको पूजा में मन्दिर तक पहुंचने का कार्य दे दिया।अब ब्रह्म मुहूर्त में पूजा होने हैं तो मध्यरात्रि में फूलों को चुटने के लिए जाना पड़ता था।कुछ दिन तो यही सिल सिला चला लेकिन उसकी प्रेमिका को थोड़ा एतराज था तो वह नाराज रहने लगी।जो सही मायने में कमल होते हैं वे रात्रि में अपनी पंखुड़ियों को बंद कर देते हैं जो प्रात: खुल जाती हैं।

उसने यक्ष को सलाह दी कि वह रात को ही बंद कमलों को ला के रख ले और ब्रह्म मुहूर्त में राजा कुबेर को मन्दिर में जा कर दें आएं।यक्ष तो खुश हो गया कि मध्यरात्रि को उठना नहीं पड़ेगा तो वह रोज यही काम करने लगा।लेकिन एक दिन एक कमल में भंवरा जो कुछ रस ज्यादा पीने का लालची था वह पंखिरियों के बंद होने से पहले नहीं निकल पाया और कमल में बंद हो गया।सुबह जब कुबेर जी ने कमल को पकड़ा तभी कमल की पंखुड़ियां खिल गईं और इतनी देर से कमल में बंद भंवरा जुंजलाया हुआ था कुबेरजी की उंगली पर काट गया।और मधु मक्खी और भंवरे का काटने पर होती पीड़ा को वही जानता हैं जिसे कटा हो।कहते हैं न,

जिस के पैर न पड़ी बुवाई,

वो क्या जानें पीड़ पराई’

बस हुआ भी वही दर्द से चिल्ला कर कुबेर ने यक्ष को बुलाया और गभराया हुआ यक्ष आया और दिलगिरी के साथ ही पूरी बात बता दी।कुबेरजी पीड़ा ग्रहित शब्दों में उसे शाप दे दिया की जिसकी चाह में उसने उनको पीड़ा दी हैं उसी से वह दूर हो जाएगा। और वह जंगल और पहाड़ों में फिरता भटकता रहा और अपनी प्रेमिका को याद करता रहा।अब उसे संदेश दे भी तो कैसे? उसने मेघदूत यानि बादलों को बोला कि तुम जाओ और मेरी प्रियतमा को मेरा संदेश पहुचाओं। कवि कालिदास की ये रचना पढ़ना सभी लेखकगण की पहली इच्छा रहेगी जिसमे अपनी प्रणय वेदना जो यक्ष ने बादलों के सामने वर्णित की हैं वह अति उत्तम हैं,भाषा की पराकाष्ठा हैं।

जयश्री बिरमी

अहमदाबाद, गुजरात 


 

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