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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शनिवार, 8 अक्टूबर 2022

बालिका शिक्षा

 


        मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जिसके स्त्री और पुरुष एक सिक्के के दो पहलू है। दोनों में से किसी एक भी मानहानि होती है तो सामाजिक ढाँचा गड़बड़ा जाता है। प्राचीनकाल से ही पुरूष खुद को स्वतन्त्र प्राणी मानता आया है। पर ऐसा नहीं है। वास्तविकता तो कुछ और ही है। जरूरी नहीं कि पुरुषों में ही अधिक दिमाग पाया जाता है, स्त्रियों में भी पुरुषों की अपेक्षा अधिक सोचने-समझने की क्षमता होती है । फिर आज के परिवेश में बालकों की अपेक्षा बालिकाओं को हेय दृष्टि तथा काम-वासना को तृप्त करने की वस्तु के रूप में देखा जाता है।

गार्गी भी एक विदुषी महिला थी। उन्होंने कई बार विद्वानों को शास्त्रार्थ में हराया । इंदिरा गाँधी, सुषमा स्वराज, प्रतिभा पाटिल आदि महिलाओं ने देश की प्रगति को आगे बढ़ाया। शकुन्तला देवी तो Human Computer (मानव संगणक) के नाम से प्रख्यात है। रानी लक्ष्मीबाई, चाँद बीबी, रानी दुर्गावती, रजिया सुल्तान आदि वीराँगनाएँ अपने राज्य एवम् देश के सम्मान को बनाए रखने के लिए यथाशक्ति बुद्धस्थल में कूद पड़ीं।

समय एवम् परिस्थिति के अनुसार, हर देश की संस्कृति तथा सामाजिक गतिशीलता भी प्रभावित होती है। जिसके कारण आज बालिकाओं को चूल्हा-चौका, बर्तन माँजने और कपड़े धोने तक सीमित कर दिया गया है। 'प्रारम्भ से ही बालिकाओं को घर के काम के साथ-साथ शिक्षित किया जाए तो समाज का दर्पण कुछ और ही होगा। आगे चलकर यही बालिकाएँ अपनी गृहस्थी को अच्छी तरह से चलाने में सक्षम हो जाती हैं। मदर टेरेसा, फ्लोरेंस नाइटिंगल जैसी समाज सेविका भी बन सकती है। अतः हम सभी प्रण लें कि कोई भी बालिका शिक्षा-विहीन न रहे ।

 

रुचि शर्मा (सहायक अध्यापक)

 कम्पोजिट स्कूल डुन्डूखेड़ा काँधला

शामली (उत्तर प्रदेश)

 

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