सम्पादकीय

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 अपनी बात 

        शिक्षा किसी भी देश की रीढ़ होती है | राष्ट्र का सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक ढाँचा शिक्षा पर ही टिका होता है | देश की दिशा और दशा शिक्षा ही तय करती है | इसलिए आवश्यक है कि देश के भावी नागरिकों की शिक्षा व्यवस्था पर सरकार की पैनी दृष्टि हो | सरकार को यह जानने का पूरा अधिकार भी है और दायित्व भी  कि देश के कर्णधारों में किस प्रकार के संस्कार उपजाए जा रहे हैं | जो आज विद्यार्थी हैं वही तो देश के नायक बनेगें | उन्हें ही यह विशाल और सुन्दर देश सम्भालना है | यदि हमें अपने उपवन के सभी पौधे स्वस्थ और सुन्दर चाहिए तो उनमें दिए जाने वाले पानी और उर्वरक आदि की प्रकृति और प्रकार का ध्यान रखना ही होगा |

हमारा देश बहुत विशाल है | उतना तो नहीं जितना कि हमारे पूर्वज सम्राट विक्रमादित्य हमें सौंप कर गये  थे लेकिन जितना भी अब बचा है उसकी एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण रखना हमारा परम कर्तव्य है | भारत वर्ष विविधताओं से भरा है और यह विविधता कोई आज ही उत्पन्न नहीं हो गयी | विदेश हमलों से पहले भी देश का सामाजिक स्वरुप वैदिक, शैव, वैष्णव, जैन, और बौद्ध जैसे कई मत-पन्थो में विभक्त था लेकिन इन मत-पन्थो में कभी संघर्ष देखने को नहीं मिलता था | सभी में आपस में स्वस्थ विचार विनिमय होता था | आज हमारे में देश दुनिया के वे सभी सम्प्रदाय विद्यमान हैं जो अपने उत्पत्ति स्थल से भी विलुप्त हो चुके हैं | ऐसा केवल इसीलिये सम्भव हो सका क्योंकि जब ये भारत में आये तब यहाँ कि शिक्षा और संस्कारों ने इनका विरोध नहीं किया | आज पुन: हमें एक ऐसी शिक्षा प्रणाली और पाठ्यचर्या की आवश्यकता है जो समाज से संघर्ष को समाप्त करे, सभी वर्गों को समान रूप से आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करे | एक ऐसी पाठ्यचर्या जो धर्म, मज़हब और रिलीजन से परे हो और भारत के गौरवशाली भूतकाल को उज्ज्वल भविष्य से जोड़कर देश को प्रगति के पथ पर ले जाये | अगस्त्य, कालिदास, चरक, सुश्रुत, वराहमिहिर, आर्यभट्ट और भास्कराचार्य की उस ज्ञान-गंगा का पुन: प्रवाहमय बनाये जो बीच में कुछ काल के लिए बुरी तरह अवरुद्ध हो गयी थी | देश में नयी शिक्षा नीति रही है | आशा है कि यह शिक्षा नीति फिर से भारत को गरिमामयी और समृद्ध स्वरुप प्रदान करेगी |

गाँधी-शास्त्री जयन्ती, विजय दशमी और दीपावली महापर्व की अग्रिम शुभकामनाएँ |

-जय कुमार

 

भाद्रपद शुक्ल पक्ष नवमी, सम्वत् २०७९ 

 

 

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