समझ नहीं आता कि चौड़ी-चौड़ी सडकों का जाल और कुकुरमुत्तों की तरह उगती जा रही अट्टालिकाएँ कैसे विकास का मानक हो सकती हैं ? अगर विकास का मानक मान भी लिया जाएँ तो ये किसी भी प्रकार से हमारी खुशहाली का संकेत तो बिल्कुल भी नहीं | देश की आबादी इतनी तेज़ी से बढ़ रही है कि आज जिस सड़क को टू-लेन से फोर-लेन बनाया गया सालभर बाद ही उसे सिक्स-लेन बनाने की आवश्यकता महसूस होने लगती है | आवास तो चाहे जितने बना लो उतने ही कम पड़ने लगते हैं |
देश खुशहाल तभी हो सकता है जब उस पर मनुष्यों का भार नियन्त्रित होगा, सड़कों पर वाहनों की संख्या घटेगी और नये आवासों की माँग में कमी आयेगी | मनुष्य जीवन तभी खुशहाल कहा जा सकता जब उसके पास अपने परिवार, रिश्तेदारों और मित्रों के लिए समय होगा | मशीनों की तरह भाग-दौड़ करके अपने अस्तित्व को बचाने की ज़द्द्दोज़हद से मुक्त होकर वह पक्षियों के गीतों और निर्मल झरनों से बहते पानी के संगीत का आनन्द लेने में सक्षम हो जायेगा | यह सब जनसंख्या को नियन्त्रित करके ही सम्भव है | तो चलिए सरकार से इस दिशा उचित कदम उठाने के लिए अनुरोध किया जाये |
क्रिसमस और आने वाले नववर्ष की शुभकामनायें |
जय कुमार
सम्पादक
त्रयोदशी मार्गशीर्ष विक्रम सम्वत्त्-२०७९