गाँव

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गाँव की आभा अति प्यारी,

हरितिमा जिसकी हर क्यारी,

खेत-खलिहान जहाँ लहलहाते,

बगियाँ मोहक महकें क्यारी,

 

कोकिला कूके, चिडिया चहके,

गाँव की पगडंडियाँ देखें राह,

प्रवासी प्रिय हर राही का,

लगते चौदस के दिन मेलें,

खेल,तमाशे,करतब,बाईसकोप,

और मेलों में चाट के ठेलें,

 

सूना लगता है रहट अब तो,

पनघट पर गागर राह निहारें,

चलते राही की प्यास बुझा रे,

सावन में झूलें पडें डाल पर,

सजनी सावन के गीत गाये,

नृत्य करते मयूर-पपीहा टेर लगायें,

 

सरसों के खेतों की सुन्दरता,

मस्त बयार से सोंधी सी खुशबू आये,

मेरें गाँव की मिट्टी सोना उगले,

कृषक खेतों में हल चलायें

मानस हर प्राणी की सुधा मिटाये,

गाँव में घूँघट ओढे नारी,

लाज-शर्म-सम्मान का प्रतीक बताये,

 

करें आदर-सत्कार सभी का,

अतिथि को भगवान बतायें,

स्वच्छ पवन,खुला आसमान,

धरती की कोख खजाने समाये,

फसलें मखमली चादर उडाये,

नित श्रृंगार करें अनमोल धरा का,

गाँव में कोल्हू मीठा गुड बनाये,

 

पशुओं के गले की घंटी,

नित आनंदमय राग सुनाये,

गाँव का जीवन सुखमय होता,

शहर गाँव की नित याद दिलायें।।

 

-नीतू सिंह (..)

मेरठ,  उत्तर प्रदेश

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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