स्कूल के दिन

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अब याद आते है वो

अपने स्कूल के दिन......

 

सुबह  होने   से   पहले

ये नींद  आती   न   थी

उठ जाते हम  कही तो

क्यूँ ये नींद जाती न थी

मसलते हुए आंखों  को

झाँकते थे  हम  टिफिन.....

 

खुश तो  रहते  थे हम

डरे डरे दिखते  थे हम

याद सबकुछ तो होता

गणित से डरते थे  हम

बैंच होता न  तब  वहा

पढ़ते हम  बैठ  जमीन.....

 

दोस्त तब बनता  भाई

बहनों से होती  लड़ाई

हल्ला कौन  है  करता

कह होती थी    पिटाई

था  समय  वो    सरल

पर लगता था   कठिन....

 

अब याद आते है वो

अपने स्कूल के दिन..........

 

  

सोमेश देवांगन

गोपीबंद पारा पंडरिया

कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

  

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