गोविन्द

सृजन
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 जन्म लेते सभी हैं धरा पर मगर,

पाप धुलने कन्हैया प्रकट हो गए।

खुल गए सारे बंधन पित-मातु के,

उनके रखवाले प्रहरी वहीं सो गए॥

 

अर्कजा पार करके वसुदेव ने,

कृष्ण को नंद बाबा के घर ले गए।

मार डाला पूतना को शैशव काल में ,

अपनी छवि को जसोदा के घर कर गए॥

छुप-छुपा के है खाया नवनीत को,

वो गैया चराते बड़े हो गए॥

 

रास-लीला रचाई राधा रानी के संग,

रूप अनुरूप में वो प्रकट हो गए।

पार्थ के सारथी बन कुरुक्षेत्र में,

सत्य की जीत का ध्वज उठाते गए॥

आओ वंदन करें अपने गोविंद का,

उनके दर्शन को पाकर सभी तर गए॥

 

 

प्रो० सत्येन्द्र मोहन सिंह

रूहेलखंड विश्व विद्यालय, बरेली

 

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