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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

आँसू

         सलोनी बिटिया की फरमाइशों को विराम ही नहीं लग रहा था, ‘पापा ! चॉकलेट लाना, टॉफी लाना, बिस्किट लाना, सेब लाना और बड़ी -बड़ी आंखों वाली गुड़िया लाना जिसके सुनहरे बाल हों और लाल कलर की फ्रॉक पहने हो ।’

समीर मौन स्वीकृति में सिर हिला -हिलाकर हामी भर रहा था, कि तभी पीछे से समीर की पत्नी आ गई  ।

सुनो ! थोड़ा जल्दी तैयार होकर निकल जाओ, नहीं तो कल की तरह आज भी काम नहीं मिलेगा । फिर कहां से पूरी करोगे बिटिया की फरमाइशें ।’

  पत्नी की गंभीर बात सुनकर समीर ने जल्दी-जल्दी हाथ चलाकर नहाने -धोने का काम निपटाया और कपड़े पहनकर सलोनी से टाटा बाय-बाय करते हुए काम की तलाश में बाहर निकल गया ।

  सलोनी बिटिया अपने पापा को तब तक देखती रही जब तक समीर लंबी सड़क पर आंखों से ओझल न हो गया ।

सलोनी की मां रसोई घर से उसके लिए कुछ खाने को लाई । अपनी बेटी की गोल - मटोल स्वच्छ भूरी आंखों में निश्छलता और अपनों के प्रति प्यार को देख, उसकी भावनाएं जागीं तो उसने अपनी बेटी को सीने से चिपका लिया । आंखों से आंसू स्वत निकल गये । मन ही मन उसने ईश्वर से प्रार्थना की प्रभु ! आज मेरे पति को काम अवश्य मिल जाये । डबडबाई आंखों से वह खुद आंसू पोंछती तब तक सलोनी बिटिया ने अपनी मम्मी के आंसू पोंछ दिये ।

- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

ग्राम रिहावली, डाक घर तारौली गुर्जर,

फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश

  

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