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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

श्यामा

  


           श्यामा पढ़ी-लिखी और गृहकार्य में कुशल कन्या थी। उसका रंग थोड़ा सांवला था। इसलिए कई लड़के उसे नापसंद करके चले गएं। उसके माता-पिता को चिंता खाए जा रही थी। आज़ श्यामा को बहुत ही पढ़ा-लिखा और कॉलेज में प्रोफ़ेसर की जॉब करता किशन नाम का एक लड़का देखने आने वाला है।

      किशन अपने माता पिता के साथ श्यामा के घर पहुंचा। श्यामा के पिता- "पधारिए! पधारिए! हम आपका ही इंतजार कर रहे थे।‌‌ सोफे पर आराम से बैठिएं।"

      श्यामा की मां- "भाई साहब, आपका हमारे यहां आना ही हमारी खुशनसीबी है। बड़े जतन से श्यामा को पाला और पढ़ाया है। हर काम में माहिर है हमारी बिटिया रानी।"

      इतने में श्यामा लाल रंग की साड़ी, हरी चूड़ियां, माथे पर कुमकुम की बिंदी, लंबे खुले बाल और फूलों के गजरे में सुसज्जित होकर चाय और नाश्ते की डिश लेकर आती है। चाय और नाश्ता देने के बाद मां ने उसे अपने पास पड़ी कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा किया।

       किशन की मां- "भाई साहब, अगर आपकी अनुमति हो तो किशन और श्यामा के बीच थोड़ी बातचीत हो जाए, ताकि दोनों विचारों का आदान प्रदान कर सकें।"

श्यामा के पिता- "बेटी, किशन को ज़रा अंदर वाले कमरे में ले जाओ।"

       लगभग पंद्रह मिनट के बाद किशन और श्यामा कमरे से बाहर आएं। किशन ने अपने माता पिता के पास बैठकर धीमे स्वर में अपना फ़ैसला सुना दिया। किशन के पिता- "सब कुछ ठीक है, लेकिन.....?"

लेकिन....? सुनकर श्यामा के पिता का चेहरा फीका पड़ गया। वे धीमे स्वर में बोले- "लेकिन क्या?"

किशन के पिता- "लेकिन हमारी यह शर्त है कि हम आपसे दहेज में कुछ भी नहीं लेंगे। श्यामा की डिग्रियां ही हमारे लिए दहेज है।"

श्यामा के पिता- "भाई साहब, आज़ के जमाने में आप जैसे लोग बहुत कम मिलते हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि आपके खानदान परिवार के साथ हमारा रिश्ता जुड़ेगा।"

किशन के पिता- "बात रही शरीर के रंग-रूप की तो मैं आपसे यह बताना चाहूंगा कि गृहस्थ जीवन शरीर के रंग-रूप से नहीं, किंतु संस्कार और एक दूसरे के साथ विचारों का सामंजस्य से सफ़ल होता है। शरीर का रंग-रूप तो आज़ है और कल नहीं। जीवन भर काम आएंगे संस्कार और विचारों का सामंजस्य।"

श्यामा के पिता- "भाई साहब, आपने बिल्कुल ठीक कहा।"

किशन के पिता- "हमें लगता है कि किशन और श्यामा के विचार एक दूसरे से मिलते हैं, इसलिए संसार रथ को चलाने में भविष्य में दोनों को कोई तकलीफ़ नहीं होगी। बस, अब आप हामी भर दीजिए।"

किशन के पिता को सुनकर श्यामा के माता-पिता की आंखें खुशी के कारण भर आईं और दिल पर रखा बोझ हट गया।

समीर उपाध्याय 'ललित'

सुरेंद्रनगर, गुजरात

 

 

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