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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

एक जैसे दुःख

        


बाहर की गर्मी और तपिस  देखकर ही लोगों के पसीने छूट रहे थें l पारा पैंतालिस के  पार चल रहा था l पशु - पक्षी ,  चिड़ियाँ -चुग्गे सब ईश्वर से प्रार्थना कर रहें थें , कि जल्दी से बारिश हो और पारा कुछ नीचे गिरे लेकिन  जयवर्धन सुबह से ही  काम में जुटा हुआ था l रेत को बोरियों में भरकर  दो तल्ले पर धीरे - धीरे   चढ़ा रहा था l जयवर्धन ,   साठ साल से कम का नहीं है l इतने उम्र तक तो लोग रिटायर होकर घरों में सुख - सुविधा के मजे उड़ाते हैं l जयवर्धन को उसके बच्चों ने घर से निकाल दिया है l जवानी में जयवर्धन हट्टा- कट्ठा था l पैसे कमाता था तो जमकर खाता भी था l अब हड्डियों का  केवल ढाँचा ही बचा है l वैसी खाली इमारत जो कभी भी ढह सकती है l

जुगल ठेकेदार रेत की धीमी  ढुलाई से खीज गया था  l मजदूरों को उसने ठेके पर लगाया था l  काम को तीन दिनों में खत्म होना था l लेकिन किसी तरह वो दो दिनों में ही काम को  निपटाना चाह रहा था l ताकि कुछ ज्यादा पैसे वो बचा सके l

जुगल ने जयवर्धन को डपटा - " अबे , थोड़ा जल्दी- जल्दी पैर चला l इस तरह से सीढ़ियाँ चढेगा तो हफ्ते भर में भी  काम खत्म नहीं होगा l "

जयवर्धन गमछे से पसीना पोंछते हुए बोला   - "  हाँ बाबू अभी जल्दी करता हूँ l बस तुरंत अभी खत्म करता हूँ l "

स्टेन साहब से रहा ना गया l वो , जुगल से बोले - " अरे भाई , सुबह से वो  बेचारा इतनी गर्मी में काम कर रहा है l  कम - से - कम उसे कुछ खाने के लिये तो पूछ लो l  आखिर वो भी तो आदमी है l हमारी - तुम्हारी  जब इतनी भीषण गर्मी से जान निकल रही है l  तो क्या वो इंसान नहीं है  ?  वो , बिना कुछ खाये -पिये खटे जा रहा है l जाओ उसे कुछ खाने को दो और कुछ देर आराम करने को कहो  l  "

जब जुगल ने कुछ नहीं कहा तो  , स्टेन साहब ने अपनी तरफ से  जयवर्धन को आवाज दी - "  जयवर्धन ....अरे भाई जयवर्धन तुम कब तक काम करते रहोगे यार l उन्होंने जेब से  एक सौ रूपये का नोट निकाला और सामने के होटल की तरफ इशारा  करते हुए बोले l  जाओ रे भले मानस  उस होटल से कुछ खाकर आओ l काहे फोकट में जान देने पर तुले हो भाई   जाओ  l "

स्टेन साहब करोड़ों की कोठी और कई शापिंग कांपलेक्स के मालिक थें l लेकिन बेटा सात समंदर पार विदेश में अपने बच्चों के साथ रहता था l वो भी साठ के करीब ही थें l अचानक जयवर्धन का दु:ख उन्हें अपना ही दु:ख लगने लगा था  l और वो भीतर - ही भीतर कहीं रीतने लगे थें l और, ठेकेदार सारा माजरा समझने के चक्कर में था l वो उजबकों की तरह अपने मालिक स्टेन साहब को घूरे जा रहा था l

महेश कुमार केशरी

 मेघदूत मार्केट फुसरो

 बोकारो झारखंड

 

 

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