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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शनिवार, 4 जून 2022

भूख

        गायत्री ने जुगल को एक बार घर से बाहर निकलते वक्त फिर से याद दिलाया - " आज
तुम्हारा तीसरा  दिन है
l आज भी खाली हाथ मत लौटना l नहीं ,  तो आज बच्चे मानने वाले  नहीं हैं l कल पड़ोसन के यहाँ से  पार्टी में बची पूड़ी लाकर खिलाया था l सम्मी की माँ का नरसों का उधार लिया दो सौ रूपया भी चुकाना है l उधर पंसारी सौदा देने से मना कर रहा है l सबके अपने तकाजे हैं l मैं आखिर कहाँ तक देखूँ  ?  "

  आखिर जुगल से भी नहीं रहा गया l  और वो , गायत्री पर बिफर पड़ा - " आखिर , तीन दिनों से बोहनी नहीं हो रही है l तो मैं क्या करूँ ?   मैं  शौक से थोड़ी ही  खाली हाथ लौटता हूँ l कुकुरमुत्ते की तरह बेगारी बेरोजगार लड़के हो गये हैं l एक तो आर्डर नहीं है l भेड़ों से ज्यादा गड़ेंरी हो गये हैं l ना ही मैं घर में बैठा रहता हूँ l  सुबह नौ बजे से रात दस बजे तक  आखरी आर्डर के इंतजार में मैं सड़कों की खाक छानता रहता हूँ l अब जब   बाजार ही  ज्यादा खराब रहता है l  तो कोई क्या कर सकता है ? "

  पर्वतपुर पहाड़ी एरिया है l यहाँ बारिश कुछ ज्यादा ही  होती है l ऑनलाईन आर्डर बरसात में कम ही निकलते हैं l फिर , गाँव- ज्वार  वाला एरिया होने के कारण पिज्जा- बर्गर और पेटिस खाने वाले लोग हैं ही कितने ?  वो तो शहर में पढ़ने वाले आजकल के नौजवान लड़के- लड़कियों के  शौक- मौज की चीज है l "

" पापा...बहुत भूख लगी है l कुछ खाने के लिए लेकर आओ ना l "

   रंगोली ने जब बहुत लाड से कहा तो जुगल की तंद्रा टूटी - " हड़बड़ाकर बोला ... अभी देखता हूँ l जाकर बाहर से कुछ लाता हूँ l "

  जुगल ने जेब टटोली कल रात जब वो घर आने के लिए लौट रहा था l तब उसकी जेब में एक पाँच रूपये  का सिक्का था l और उसी सिक्के से उसने एक पैकेट बिस्किट खरीद लिया था l रास्ते में उसमें से एक बिस्किट निकालकर खाया था l बाकी के पाँच - छ: बिस्किट उस पन्नी में पड़े थें l जुगल ने मुस्कुराते हुए वो बिस्किट का पैकेट  रंगोली की ओर बढ़ा दिया l  वो कूदती -फांदती बिस्किट का पैकेट लेकर बाहर भाग गई l "

 

 

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