शलभासन

सृजन
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     इस आसन में शरीर की आकृति शलभ(टिड्डे) जैसी हो जाती है इसलिए इसका नाम शलभासन है। इससे पेट का निचला भाग,पेड़ू के अंग प्रभावित होते हैं।रीढ़ का निचला भाग सक्रिय हो जाता है। कूल्हों का जोड़ शरीर का महाजोड़ है यदि इसमें शिथिलता आ जाए तो शरीर की चुस्ती खो जाती है।

विधि - पेट के बल आसन पर लेट जाएं। दोनों हाथों की कोहनियां पेट के नीचे एक दूसरे के अधिकतम निकट रखें।  दोनों हथेलियां जंघांवो के नीचे।  दोनों पैरों की एड़ियां व पंजे मिलाएं। पंजे तानें। ठोड़ी पृथ्वी पर लगाएं। श्वास भरकर बिना मोडे दोनों पैर सीधे के सीधे ऊपर उठाएं। अधिकतम ऊपर उठाएं। यथाशक्ति रुकें। सांस को सामान्य कर लें। धीरे-धीरे वापस आएं। कुछ देर विश्राम करें।तीन बार अभ्यास करें।

           शुरू में दोनों पैरों से एक साथ न हो सके तो बारी-बारी से एक-एक पैर को उठाकर करें।इसे अर्धशलभासन कहते हैं।अभ्यास बढ़ जाने पर दोनों पैरों से एक साथ करें।

लाभ - रीढ़ का निचला भाग सक्रिय व लचीला होता है जिससे मजबूती व चुस्ती आती है।

स्लिप डिस्क, कमर दर्द,साइटिका पेन में लाभकारी है।

मूत्र विकार,कब्ज पेट के निचले हिस्से के अन्य रोग ठीक होते हैं।

दोनों टांगे,फेफड़े व ह्रदय सशक्त बनते हैं।

सावधानी - सुबह खाली पेट या खाने के 5 घंटे बाद करें।

                              पुष्पेंद्र कुमार सैनी (प्र00)

                              प्राथमिक विद्यालय मानकपुर

                              थानाभवन (शामली)

 

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