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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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रविवार, 5 जून 2022

माँ

 

सौ दर्द छिपें हैं सीने में,
          फिर भी इक माँ हंसती रहती।

अपना दुःख उसे नही दिखता,
             पर देख हमें हंसती रहती।।

जिस ममता से पाला उसने,
            वो अद्भुत, अगम, अगोचर है।
जिसको मिलती माँ की साया,
             वो कृपा पात्र अचराचर है।।

जीवन तो धन्य हुआ उनका,
            जिनको मिलता रहता प्रसाद।
सत्य-प्रेम की माँ की मणियाँ,
                 सदा दूर रखती अवसाद॥

आओ नत-मस्तक हो करके,
              श्री चरणों का चरणोदक लें।
दे-दें सारे सुख उस माँ को,
           रसना से करुणा को चख ले॥

२.
सबसे पवित्र सबसे पावन,
             सबसे अद्भुत माँ का आँचल।
ना लगे नज़र अपने सुत को,
             माथे पर जड़ देती काजल॥

चाहे जितने दुःख आ जायें,
                 माँ देख मुझे हंसती रहती।
अपने आँचल में बांध सदा,
               सारी विपदा सहती रहती॥

होते हैं अहो भाग्य उनके,
          जिनको मिलती माँ की ममता।
पर्याय न कोई बन पाया,
               रखती ऐसी अद्भुत क्षमता॥

नत-मस्तक हो लो चरणो में,
                 सब तीर्थ स्वयं हो जाएगें।
क्यों भटक रहे हो मंदिर में,
            प्रभु स्वयं तुम्हें मिल जाएगें॥

डॉ0  सत्येन्द्र मोहन सिंह
आचार्य
रूहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली।

 

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