पिता

सृजन
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जो देख हमें हँसते रहते,
                 सर्वदा साथ मेरे रहते।
ना आने देते कोई विपदा,
       वो स्वयं सहन सब कर लेते॥

वो कभी नहीं खाते पहले,
             दुलरा कर मुझे खिलाते हैं।
ना जाने किन अरमानों का,
             वो मन में दिया जलाते हैं॥

क्या कुछ कर दूँ ये सोच सदा,
             उनके मन में पलती रहती।
अपने बचपन को देख-देख,
             उन में उमंग उठती रहती॥

जैसे देता है प्राण-वायु ,
            पीपल तरु इस सारे जग को।
ऐसे ही हैं मेरे बापू,
            ख़ुशियों से भर देते घर को॥

आओ हम वंदन कर उनका,
                चरणों में शीश नवाँ डालें।
जो दिये मंत्र जीवन-पथ के,
          चल कर इतिहास रचा डालें॥


 

सत्येन्द्र मोहन सिंह
आचार्य
रूहेलखंड विश्व विद्यालय, बरेली।

 

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