प्रतिक्षण स्वयं ही जल जलकर
आलोकित कर देता वसुंधरा को
अज्ञानता का तिमिर मिटाकर
अस्तित्व मिटा देता सदा अपना
किसी से करता नहीं शिकायत कभी
मद्धम मद्धम पल पल घटता जाता
पर करता नहीं अपनी परवाह कभी
क्षणभंगुर जीवन होता दीपक का
अलौकिक होती है इसकी आभा
जीता सर्वदा दूसरों के लिए ही यह
प्रतिफल की नहीं करता अभिलाषा
मानव सीख दीपक से जीवन मूल्य
स्वार्थ से जरा ऊपर उठकर देख
निज स्वार्थ के कारण तूने कितने
अनमोल स्नेही रिश्तें दिए हैं फेंक
यह मेरा यह उसका बस यही सोचकर
छोटी मानसिकता में मानव में जी रहा
दीपक सदृश बनकर क्यों नहीं मानव
सबके लिए प्रकाश पुंज फैला रहा
तेल व बाती का संगम देखकर सीखों
परस्पर सौहार्द प्यार की पारंपरिक बातें
अंहकार को त्याग मानव बहाना हमेशा
समाज में अविरल प्रेम सुधा रस गंगा
अलका शर्मा
शामली, उत्तर प्रदेश