नन्हा पादप

सृजन
0

 

यह  नन्हा  पादप ले निकला

दो दल  कोमल अरमानों के।

मुस्काया   सुन्दर    काया  ले

है कोख जगाया बंजर धरती के।।

 

धरती की बंजर  छाती को चीर

खड़ा तन कर नभ छू लेनें को।

शीत   ताप   को  सह   कर  भी

मन में उमंग है ऊपर उठने  को।

 

हौसला बहुत  रखता  मन में

कुछ कर जानें की जन जीवन हित।

तुम  पानीं  इसे  पिलाते  रहना

है प्यासा खड़ा मिट्टी कंकरीट।।

 

मित्र  तुम्हारा  बन   जायेगा

गर  जतन करो तो बढ़ जायेगा।

स्वच्छ करेगा दूषित जल थल

हवा   सुगंधित बिखरायेगा।।

 

बन कर पथिकों की छाया यह

फल फूल से तृप्त करेगा नित।

बस एक "विजय" तुम दो इसको

तन सींच के प्यास बुझा सुमीत।।

 

यह   पुनः  तुम्हें लौटा देगा

जो कर्ज लिए जीवन के हित।

यह  शुद्ध  हवा    बरसायेगा

तन तपा के सर्दी गर्मी में निज।।

                  विजय लक्ष्मी पाण्डेय

                        आजमगढ़, उत्तर प्रदेश

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!