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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शनिवार, 12 मार्च 2022

स्वर के एक युग का अंत

 आह! सुना कानों ने यह क्या,

नैनों से क्यों बहता पानी ।

शांत हुई क्यों सरस कोकिला,

की अमृतमय मधुरिम वानी ।।

 

स्वर की देवी का यूँ जाना,

जैसे युग का अंत हुआ है ।

मुरझाया भारत का उपवन,

कैसा व्यथित वसंत हुआ है ।

फूल लताएं कहें सहम कर,

नहीं लता का कोई सानी ।

 

ऐ! भारत की सरस कोकिला,

तूने रस की धार बहाई ।

जिसमें डूबी यह नव पीढ़ी,

भीग-भीग कर खूब नहाई ।

गूँजीं स्वर की मधुर लहरियाँ,

लहर-लहर कर हैं लहरानी ।

 

स्वर साम्राज्ञी स्वर की देवी,

स्वर सरिता सी है कल्याणी ।

गूँज रही है कण-कण में शुभ,

मधुर रागिनी अमृत वाणी ।

युगों-युगों गाई जाएगी,

तेरी मधुमय अमर कहानी ।

 

नए पुराने का शुभ संगम,

तुमने करके दिखलाया है ।

नीरस से शास्त्रीय संगीत को,

सुगम बनाया गाया है ।

सुख वैभव का त्याग किया औ'

कहलाई तुम स्वर की रानी ।

 

श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

                             व्याख्याता-हिन्दी

         अशोक उ०मा०विद्यालय, लहार

                जिला-भिण्ड, (म०प्र०)

                  मो०- 8839010923

 

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