साहित्य साधना में हो कर लीन
करते हो कितना चमत्कार
समाज को दिखाते हो
नई दिशा व दशा
अन्याय व शोषण का
शब्दों से करते हो प्रतिकार
साहित्य से भरते हो प्रकाश
दूर करते हो अंधकार
हे कवि! तुम्हें प्रणाम
समाज को देते हो नए आयाम
यद्यपि कुछ को लगता है
व्यर्थ का यह काम
सदियों से साहित्यकारों ने
हर काल और युग में
अपने कलम से
नव जागरण लाया है
क्रांति को आगे बढ़ाया है
हे कवि! तुम्हारा बार बार वंदन
समाज करता रहा अभिनंदन
शब्दों के सौंदर्य बोध से गढ़े हैं
प्रेम के कई प्रतिमान
सत्यनिष्ठा व कर्तव्य के लिखे हैं
कई ऐसे निशान
जिसे पढ़ कर बच्चे सीखते हैं
महाराणा प्रताप की देशभक्ति
सुभाष चंद्र भगतसिंह व आजाद
जैसे ही बनना
कितने महापुरुष हो जाते हैं
भगवान के ही समान
पूरे विश्व को देते हैं ज्ञान
श्रवण कुमार की कहानी पढ़
बन गए राष्ट्र पिता महात्मा गांधी
जिसने चलाई अंग्रेजों के विरुद्ध आँधी
हे कलमकार! तुम्हें है नमन
तुमने सदैव ही मुजलिमों के
पीड़ा को शब्दों से बयां किया
निज स्वार्थ पर न ही ध्यान दिया
धन दौलत से न रखा सरोकार
समाज पर किया है परोपकार
भले न हो गुणगान
तुम रहे हो सदा महान
देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
बस्ती (उत्तर प्रदेश)