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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शनिवार, 12 मार्च 2022

पृथ्वीराज चौहान

 पराक्रम साहस हथियार,

दया करूणा  श्रंगार।

परमवीर क्षमाशील क्षत्रिय,

था पृथ्वीराज चौहान।।

 

भास्कर-सा प्रखर प्रचंड,

सिंह-सा करता गर्जन।

तेज-तर्रार ओजस्वी भाषा,

था अतुलनीय योद्धा।।

 

तराइन का जीता युद्ध,

पर चौहान कर बैठा भूल।

गौरी ने मांगा क्षमा दान,

राठोर ने बक्ष दी जान।।

 

गौरी ने किया छल,

सांकल से बांधा कर।

सहस्त्र दी यंत्रणा,

चौहान रचंमात्र ना घबराया।।

 

आंखों में भरा ज्वार,

निर्भिक निडर स्वाभिमान।

प्राचीर में किया कैद,

प्रतीत - सम गब्बर शेर।।

गौरी को रास ना आया,

गर्म छुरे से आंख दी फोड़।

कर दिया जीवन में अंधेरा,

जैसे बिन बाती के दीया।।

 

उर में रह गई याद केवल,

नेत्रों मे बसी जिसकी मूरत।

थी प्रेम की प्रतिमूर्ति संयोगिता,

दृग अब ना देख पाएंगी सूरत।।

 

गजनी पहुंचा कवि चंदबरदाई,

चौहान को देख हुआ निष्प्राण।

जिसकी आभा थी मार्तण्ड समान,

कैसे हो गया निस्तेज निष्प्राण?

 

हे! कुलभूषण   रणधीर,

चलाते तुम शब्दभेदी बाण।

क्या तुमको नही तनिक भान?

कैसा तू नादान ओ चौहान?

 

चंदबरदाई ने बनाई योजना,

कपटी गौरी से जाकर बोला।

शब्दभेदी बाण चलाता चौहान,

सुनकर शातिर गौरी हुआ हैरान।।

गौरी ने किया आह्वान,

कल होगा कला प्रदर्शन।

चौहान चलाएगा शब्दभेदी बाण,

दिखाएगा तिरंदाजी का कमाल।।

 

चंद कविराज ने दोहा कहकर,

सुल्तान कहां बैठा दिया संकेत।

पाकर इशारा चलाया बाण,

मौके से ना चूका चौहान।।

 

गौरी का वध करने के उपरांत,

शांत हुई प्रतिशोध की ज्वाला।

फिर एक दूसरे का वध कर,

दोस्ती को अमर कर डाला।।

 

प्रियंका त्रिपाठी 'पांडेय'

प्रयागराज उत्तर प्रदेश

 

 

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