.

सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

नवीनतम

शनिवार, 12 मार्च 2022

जा रही हो शेफ़ालिके !

 जा रही हो शेफ़ालिके !

तो जाओ

महाप्रयाण करो

अनंत की ओर

तुम मधुरता का पर्याय हो

संगीत का भैरवी हो

बसंत का प्रथम सोपान हो

जाओ शुभ्रवसना

जाओ माधुर्य सुता

परन्तु मत माँगो हमसे

चिर विदा

क्योंकि यह हम

दे न सकेंगे

चाहो तो स्वार्थी मानो

या कहो लुब्ध कृपण

पर हे वागेश्वरी

हम ने सीखा ही नहीं

जीना तुम बिन

तुम माँ वीणापाणि की

वीणा की तान हो

माधुर्य की मधुर

मुस्कान हो

पर हमारे लिए तो

प्रेम राग हो

हर बार मन जब भी

उदास होता है

तुम्हारा ही कोई

गीत हमारे आस पास

होता है

तुम हमारी पीड़ा

में सहेली हो

हमारे एकांत की

सहचरी हो

हमारे आँसुओं की

एकमात्र साक्षी हो

और दुःख के बादलों

के छटने के बाद

छिटकती धूप हो

तुम ही कहो

कैसे दें विदा

कैसे कहें कि

मौन हो जाओ

वीणा

हाँ जानते हैं

तुम्हें जाना होगा

प्रकृति के नियम भी तो

निभाना होगा

जा रही हो तो

जाओ कान्हा के

वृंदावन की

पावन लता

पर वादा करती जाओ

लौटो गी तुम

फिर किसी दिन

कान्हा की बाँसुरी बन

माँ शारदा की वीणा का

झनकता तार बन

तब तक हम

प्रतीक्षारत रहेंगे

तुम ही कहो

तुम्हारे बानवें बसन्तों का कर्ज

कहाँ चुका पाएंगे

हम भारतवासी

जा रही हो तो जाओ

शेफ़ालिके

पर लौट आना

तुम बस यह वादा निभाना

बस लौट आना...।

 

डॉ0  प्रिया सूफ़ी

व्याख्याता

होशियारपुर, पंजाब

 

 

 

सर्वाधिक लोकप्रिय