जिससे मिलता है,
प्राणियों को अक्षय वरदान |
शाश्वत चिरंतन दीप्तिमान
कहते हैं,
पेड़ हैं भगवान के रोंये |
नदियाँ हैं उनकी नाड़ियाँ,
पहाड़ है उनका मस्तक,
पेड़ काटे जा रहे हैं |
नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं
पहाड़ डायनामाइट से,
उड़ाए जा रहे हैं,
सोचें, क्या यह नहीं है ?
प्रकृति के साथ अन्याय,
मानव क्यों करता है हाय - हाय?
क्या प्रकृति नहीं होगी कुपित ?
प्राणी नहीं होगा दुःखित,
प्रकृति करती है हमारा पोषण,
हम करते हैं उसका शोषण |
समझें प्रकृति का पूजन - कर्म,
निभाएँ पर्यावरण संरक्षण का धर्म |
117 आदिलनगर, विकासनगर
लखनऊ 226022