ओ गौरैया रानी !
मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
तेरे पंख सुनहले ।
रोज नहाती फिर क्यों लगते
पर तेरे मटमैले ।
रोज नहाने में तुम करतीं
लगता आना-कानी ।
ओ गौरैया रानी ।।
आकर पत्तों के पीछे तुम
मुझसे क्यों छुप जातीं ।
और वहीं से चीं-चीं करके
मुझको रोज बुलातीं ।
फुर्र इधर से फुर्र उधर तुम
करती हो शैतानी ।
ओ गौरैया रानी ।।
कल फिर आना स्वागत में हम
बिखरायेंगे दाने ।
और तुम्हें वे दाने सारे
होंगे चुगने खाने ।
वहीं पास में हम रख देंगे
एक कटोरा पानी ।
ओ गौरैया रानी ।।
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
व्याख्याता-हिन्दी
अशोक उ०मा०विद्यालय, लहार
जिला-भिण्ड (म०प्र०)