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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शुक्रवार, 11 मार्च 2022

ओ गौरैया

ओ गौरैया रानी !


 

मुझे बहुत अच्छे लगते हैं

तेरे पंख सुनहले ।

रोज नहाती फिर क्यों लगते

पर तेरे मटमैले ।

रोज नहाने में तुम करतीं

लगता आना-कानी ।

ओ गौरैया रानी ।।

 

आकर पत्तों के पीछे तुम

मुझसे क्यों छुप जातीं ।

और वहीं से चीं-चीं करके

मुझको रोज बुलातीं ।

फुर्र इधर से फुर्र उधर तुम

करती हो शैतानी ।

ओ गौरैया रानी ।।

 

कल फिर आना स्वागत में हम

बिखरायेंगे दाने ।

और तुम्हें वे दाने सारे

होंगे चुगने खाने ।

वहीं पास में हम रख देंगे

एक कटोरा पानी ।

ओ गौरैया रानी ।।

 

श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

                             व्याख्याता-हिन्दी

         अशोक उ०मा०विद्यालय, लहार

                 जिला-भिण्ड (म०प्र०)

 

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