अंतिम फ़ैसला

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 "अरे आरती! तुम अब तक तैयार नहीं हुई, तुम्हें याद है न कि आज सोनोग्राफ़ी के लिए डॉक्टर के पास जाना है।" अपनी रौबदार आवाज़ में रमेश बोला।

"ये सब ज़रूरी है क्या?" आरती धीरे से बोल पड़ी।

रमेश गुस्से से तिलमिलाता हुआ बोला- "तुम पहले ही एक बेटी पैदा कर चुकी हो और अब यदि दोबारा बेटी ही हुई तो दो-दो बेटियों का बोझ कौन उठाएगा...?"

"लेकिन रमेश..."

इससे पहले कि आरती कुछ बोले, रमेश उसकी बात को काटते हुए बोल उठा-"अब मुझे बेटी नहीं चाहिए, दैट्स फाइनल! और ये मेरा आख़िरी फैसला है इसलिए अब जाओ और जाकर तैयार हो जाओ।"

आरती ने अपनी दो साल की बच्ची को गोद में उठाया और घर की चाभी रमेश को थमाते हुए बोली- "जिस घर में मेरी बेटियाँ सुरक्षित नहीं उस घर में मैं कभी ख़ुश नहीं रह पाऊँगी, इसलिए मैं हमेशा के लिए ये घर छोड़ रही हूँ। और हाँ! मेरा भी ये 'अंतिम फ़ैसला' ही है।"- कहते हुए आरती तेज़ी से बाहर की ओर निकल गई।

रमेश स्तब्ध होकर ताकता रह गया...।

 

अनिता सिंह (शिक्षिका)

देवघर, झारखण्ड।

 

 

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