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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शुक्रवार, 11 मार्च 2022

सशस्त्र सेना झंडा दिवस

         हमारा देश भारत एक विशाल देश है। हमारी सीमाएं बहुत दूर तक फैली हुई है। इन सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी देश की तीनों सेनाओं के कंधों पर है। देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए देश द्वारा लड़े गए विभिन्न युद्धों तथा  सीमा पार से चलाते जा रहे आतंकवाद का मुकाबला करने के दौरान हमारी सेना के जवान अपने बहुमूल्य जीवन का बलिदान दे देते हैं तथा बहुत सारे सैनिक गोली लगने , माइन्स फटने या कुछ अन्य कारणों से विकलांग भी हो जाते हैं। परिवार के मुखिया की आक
स्मिक मृत्यु या विकलांग होने से परिवार को जो आघात पहुंचता है, उसकी कल्पना करना कठिन है।

   हमारे देश की सेना के शहीदों के परिवार और  विकलांग सैनिकों की देखभाल और पुनर्वास की आवश्यकता होती है ताकि वे खुद को अपने परिवार पर बोझ न समझें और सम्मान का जीवन जी सकें। इसके अलावा, ऐसे सेवानिवृत्त सैनिक  जो कैंसर, हृदय रोग आदि जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, उन्हें भी हमारी देखभाल और सहायता की आवश्यकता है क्योंकि वे उपचार की मंहगी लागत को वहन करने में असमर्थ होते हैं।

  हमारी सीमाओं पर देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए हमारे सैनिक बहादुरी से लड़ते हैं। देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से बढ़कर कोई महान कार्य नहीं हो सकता। देश की रक्षा करते हुए जो सैनिक घायल हो जाते हैं या शहीद हो जाते हैं, उनके प्रति हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम उनकी वीरांगनाओं और बच्चों की देखभाल करें, जिनको वह अपने पीछे छोड गये है।

  हमारे सशस्त्र सेनाओं को हमेशा युवा रखने के लिए  35 - 40 वर्ष की आयु में बड़ी संख्या में हमारे सैनिक प्रत्येक वर्ष सेवानिवृत्त होते हैं जबकि वह अभी युवा और शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं। उनके अन्दर अनुशासन और नेतृत्व करने की अपार क्षमता होती है। इन सेवानिवृत्त सैनिकों और उनके परिवारों की देखभाल एक राष्ट्रीय जिम्मेदारी है।हुए थे। शहीद और घायल सैनिकों के परिवार काफी पीड़ा में थे। उन्हें सहायता की आवश्यकता थी। उन्ही पीड़ित परिवारों के दुःख दर्द को देखते हुए तथा शहीद सैनिकों की कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए सन् 1949 में सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 7 दिसंबर को झंडा दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। तब से प्रति वर्ष 7 दिसंबर को सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाया जाता है।

 

      सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों के कल्याण के लिए देश की जनता से दान के रूप में धन-संग्रह किया जाता है। यह धन युद्ध के समय शहीद या विकलांग हुए  सैनिकों  और उनके परिवार के कल्याण  के लिए खर्च किया जाता है। इस दिवस पर धन-संग्रह करने के लिए सशस्त्र सेना के प्रतीक चिन्ह "झंडे" को बाँटा जाता है।  सन् 1949 से 1992 तक इसे "झंडा दिवस" के रूप में मनाया जाता था। लेकिन 1993 से इसे "सशस्त्र सेना झंडा दिवस" के नाम पर मनाने का निर्णय लिया गया।

 

     हमारे देश की सीमा  विविधताओं से भरी है। हमारे देश की सीमाओं पर सियाचीन जैसे ग्लेशियर है , जहां पर शरीर को जमा देने वाली ठंड होती है। वहीं राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर की भयानक गर्मी है, जहाँ शरीर का पानी भी भाप बन जाता है। शरीर में दरार बना देने वाली कच्छ के रण की खारी हवा भी है, तो वहीं पूर्वी प्रदेशों की दलदल जमीन जिसमें कदम दर कदम चलना मुश्किल होता है।   इन विषम परिस्थितियों में भी हमारे वीर जवान अपनी मातृभूमि की रक्षा में सतत संघर्षशील है। हमारी तीनों सेनाओं के सैनिक तथा उनके परिवार देश की धरोहर है। इन सैनिकों और उनके परिजनों की देखभाल की जिम्मेदारी देश के प्रत्येक नागरिक की है। हम  इनका सहयोग करें ताकि देश की सीमा पर खड़ा सैनिक अपने परिवार से निश्चित होकर देश की रक्षा कर सकें।

हरी राम यादव

सूबेदार मेजर (रिटायर्ड)

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

       

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