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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शुक्रवार, 11 मार्च 2022

नी-कैप

         उस्मान साहब कुर्सी पर बैठते हुए अचानक से फिर उसी रौ में कराहे जैसे इन महीनों में‌ जब  से सर्दियाँ
शुरु हुई थीं । वे कराहा करते थे । दर्द की एक पतली महीन    रेखा उनके चेहरे पर उभर आई थी । कमबख्त घुटनों ने परेशान कर रखा है । इन दिनों । सर्दियों में  उनकी तकलीफ अक्सर बढ़ जाया करती है‌ ।

 वे फिर से  एक बार कराहे |

 _" ऊफ!   या अल्लाह .."

और   बैठक से  निकलकर ओसारे  में आ गए । जहाँ फलांग भर की दू‌री पर रूकैया साड़ी वा‌ले से साड़ी खरीद रही थी । उनको देखा तो ‌उनको नजरअंदाज करते हुए साड़ी वाले से ‌ बातों में उलझी रही ।

थोड़ा रुककर वो‌ रुकैया से बोले - " बहू , ‌ ‌‌मेरा ‌ नी-कैप कब‌का खराब हो गया है । और , ठंड की वजह से जोड़ों मे कनकनाहट    होती रहती है । अनवर से कहो ना एक जोड़ी नि -कैप  बाजार से ला दे ।  मैं तो अनवर‌ से कह -कहकर‌ थक गया ।  लेकिन‌  वो आज-कल करके टाल  जाता  है । "

रूकैया साड़ी  को एक तरफ रखते  हुए बोली  - " यहाँ लोग  अपने लिए कमाएँ या औरों   के लिए  । समझ नहीं आता । मर- मर के दिन रात काम करो ।  तब भी घर में बरकत नहीं होती । छोटी सी  नौकरी में लोग क्या-क्या जुटायें ? एक तरफ ढकों तब  दूसरी तरफ उघाड़ हो जाता ‌है । अभी पिछले साल ही तो उन्होंने आपको नि- कैप खरीदकर  दिया था । क्या इतनी जल्दी खराब हो गये । "

" अरे ,  पिछले साल कहाँ दो-  तीन साल पहले अनवर ने  नी-कैप लाया था ।  एक नी-कैप  का रबर पूरी तरह खराब हो गया है । घुटनों से नी-कैप नीचे गिर जाता है ।  और घुटनों में कनकनाहट बढने लगती है ।  " ग्रामो फोन की सई जैसे  उस्मान साहब  के गले मे घरघराई ।

" दोनों पैर में दर्द है या एक ही पैर में । " रूकैया  ने पाँच   सौ के दो नोट साड़ी वाले की तरफ बढाते हुए पूछा ।

" कभी - कभी एक पैर में भी करता है । और‌ कभी- कभी दोनों पैरों में भी  । "  उस्मान साहब खुरदरी दीवार की तरफ ताकते हुए बोले‌ ।

" आप एक ही नी-कैप को बदल- बदल कर  क्यों नहीं पहनते  ?  जब,  जिस पैर में दर्द ज्यादा हो उस पैर मेंं पहन‌ लिया कीजिए ।  इससे पैसा भी बचेगा और सामान‌ की यूटीलिटी भी बरकरार रहेगी ।

" रूकैया कमरे में जाते हुए बोली ।

उस्मान साहब के   चेहरे पर उदासी और दु:ख के कोहरे और ज्यादा घने हो गए ।  जो आँखों के रास्ते धीरे- धीरे बरसने‌ लगे ।  वे अस्फुट स्वर में जैसे बोले - " दर्द को बदलकर भी  भला  कोई पहनता है क्या ?    मेरा बस चलता तो उसे  साबुत उखाड़कर   ना फेंक  देता ! "

महेश कुमार केशरी

मेघदूत मार्केट फुसरो, बोकारो झारखंड

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