या नीर-श्रोत से गीला हो ।
जब लगे लगन हरि-दर्शन की,
चितवन में उसकी लीला हो।।
तन-मन बन जाये वृंदावन ,
मुरली की धुन अविरल बाजै।
मिल जाये चरण-धूलि केशव,
नत-मस्तक की शोभा छाजै।।
साँवरिया हो बृज़रानी के,
मेरे तो कृष्ण- कन्हैया हो।
क्यों ढूढू मंदिर में जाकर,
तुम ही तो जीवन नैया हो।।
हे गिरधर मुरलीधर माधव,
राधे संग मिलने आ जाओ।
इस मन के नंदगाँव रहकर,
अपनी अनुभूति करा जाओ।।
डॉ0 सत्येन्द्र मोहन सिंह
आचार्य
म0 ज्यो0 फु0 रूहेलखंड वि0 वि0 बरेली