पाप धुलने कन्हैया प्रकट हो गए।
खुल गये सारे बंधन पितु-मात के,
उनके रखवाले प्रहरी वहीं सो गए।।
अर्कजा पार करके वसुदेव ने,
कृष्ण को नंद बाबा के घर ले गये।
मार डाला पूतना को शैशव काल में,
अपनी छवि को जसोदा के घर कर गये।।
छुप-छुपा के है खाया नवनीत को,
वो गैया चराते बड़े हो गये।
रास-लीला रचाई राधा रानी के संग,
रूप-अनुरूप में वो प्रकट हो गये।।
पार्थ के सारथी बन कुरुक्षेत्र में,
सत्य की जीत का ध्वज उठाते गये।
आओ वंदन करें अपने गोविन्द का,
उनके दर्शन को पाकर सभी तर गये।।
डॉ0 सत्येन्द्र मोहन सिंह
आचार्य
म0 ज्यो0 फु0 रूहेलखंड वि0 वि0 बरेली