कुंजी घुमा के देखें
बंद दरवाज़े की अनदेखी
परतों को खोलें।
सदियों से
दुनियां का स्वरूप
ख़बरें जो
गढ़ रहीं
उस सोच की चादर के
सिलवटों को झटकें।
स्याह रंग के ककहरों
दीमकों के घर बने
जेहन के दरवाज़े
घिस घिस कर
खोखले हुए।
झटक कर धूल सारी
आहिस्ते आहिस्ते
अंदर के इंसान को
एकबारगी टटोलें।
निकल कर बासी खबरों
के दायरों से
दरवाज़े के सांकल को
पुरजोर से खोलें।
पढ़ रहे जो या समझ रहें जो
दुनिया को आज-कल
दरवाज़े के उस तरफ
कोई और ही
दुनिया आपकों दिखें।
क्या पता
कोई और ही
हवा चल रही हो वहां।
क्या पता
कोई और ही
दुनियां पल रही हो वहां
-शुभ्रा संतोष
फरीदाबाद, हरियाणा