क्यों औरत के हिस्से में उसका इतवार नही आता।
बचपन में मासूमियत का प्रतिशत हो रहा कम।
किसी भी चैनल पर ऐसा कोई समाचार नही आता।
बढ़ती कीमतों पर सब वाद विवाद बहुत करते हैं।
गिरती इंसानियत पर प्रश्न करने कोई पत्रकार नही आता।
सुकून के निवाले खा सके , शाम ढले घर आ सके।
जाने क्यों आज कल ऐसा कोई रोज़गार नही आता।
रोज़ ही सब से मिलती हूं बात चीत भी करती हूं ।
पर जिससे दिल खोलूँ बचपन का वो यार नही आता।
लोगों के गम लेकर बदले में खुशियां दे दे।
एक्सचेंज सेल में ऐसा ऑफर एक बार नही आता।
हर भूख को मिले रोटी हर तन को मिले कपड़ा।
देश में ऐसा जाने क्यों कोई त्योहार नही आता।
-प्रज्ञा पाण्डेय (मनु)
वापी, गुजरात