माँ

सृजन
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 माँ चाहे जैसी भी हो,

माँ सबकी अच्छी होती है।

प्रेम के सागर मे डूबी ,

कलकल बहती नदियां जैसी होती है।।

 

नैनो से छलके अश्रु,

पल मे सब समझ जाती है।

आंचल में छुपा लेती,

पिपल के छांव जैसी होती है।।

 

अपनी इच्छाओं को मारती,

हमारी इच्छाएं पूरी करती है।

सदा देती रहती,ना कुछ लेती,

धैर्यवान धरा जैसी होती है।।

 

हमारा दर्द बांटती,

अपना दर्द छुपा लेती है।

विराट हदय वाली,

नील गगन जैसी होती है।।

 

गर माँ न हो तो,

सब कुछ वीरान लगता है।

हवा सी सांसों में घुलती,

प्रकृति का उपहार जैसी होती है।।

 

 

माँ से सब कुछ कह,

मन हल्का कर लेते हैं।

माँ का मन सलोना,

माँ बिल्कुल माँ जैसी होती है।।

 

-प्रियंका पांडेय त्रिपाठी

प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

 

 

 

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