सबमें बड़ा दिखने की होड़

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 कोई कहता मैं बड़ा कोई कहता मैं बड़ा

सबमें बड़ा दिखने की लगी इक होड़ है

जहान में लगी यह नई अजब बीमारी है

जिस का न कोई ईलाज़ है न कोई तोड़ है

 

माता पिता से नहीं कोई भी दुनियाँ में बड़े

लेकिन आज देखो कैसे बृद्धाश्रम में हैं पड़े

भगवान भी अब छोटा नज़र आता है इन्हें

जिसकी कृपा से आज यह हुए हैं इतने बड़े

 

मुंह पर करते हैं तारीफ पीठ पीछे करते बुराई

राम है इनके मुंह में बगल में छुरी है दबाई

एक दूसरे को लड़ाने के नए नए तरीके ढूंढते हैं

चैन नहीं आता जब तक हो न जाये लड़ाई

 

झूठी शान इनकी बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूमते है

चरस अफीम गांजा चिट्टा खाकर नशे में झूमते हैं

बैंक का कर्जा लेकर फिर नहीं लौटाते हैं

 माँगने जो जाएं बैंक वाले तो आंखें दिखाते हैं

 

अहंकार इतना बढ़ गया सब छोटे नज़र आते हैं

महफिलें जमती हैं रोज़ गुलछर्रे उड़ाते हैं

तन पर सफेद लिवास है मन इनके काले है

समाज को जो बांट रहे यही तो नकाब वाले हैं

 

 

 

दिखावा छोड़ कर अगर सब असली ज़िन्दगी जीने लगें

जो है कान्हा का ही है चरणामृत समझ कर पीने लगें

मन की शांति और खुशी मिल जाएगी सभी को

दुख दर्द आपस में बांट कर सब मिल कर जो जीने लगें

 

-रवीन्द्र कुमार शर्मा

घुमारवीं

बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

 

 

 

 

 

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