ऐसे मानव से क्या रिश्ता ?

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जो जाति वाद में  हो जकड़ा,

धृतराष्ट्र  रूप धर वो चलता।

चाहे करना कुछ पड़ जाए ,

अंधो में काना नृप बनता।।

ऐसे मानव से क्या रिश्ता ?

जो झूठा और फ़रेबी हो,

            अभिमानी और प्रपंची हो।

रिपुओं का मुँह बोला बनकर,

      जो अहित सदा करता रहता।।

ऐसे मानव से क्या रिश्ता?

जो ऊँच-नीच का भेद करे,

थाली में खाकर छेद करे।

रसना से बोले मृदु वाणी,

                        नेताओं घर में है पलता।।

ऐसे मानव से क्या रिश्ता?

जो रिश्तों में मत भेद करे,

          मिल जाने पर फिर खेद करे।

अपना बनकर अपनों जैसा, 

स्नेही होकर आगे चलता।।

ऐसे मानव से क्या रिश्ता ?


                                -प्रो० सत्येन्द्र मोहन सिंह 

महा० ज्यो० फुले रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय

 बरेली, उत्तर प्रदेश 



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