लंकेश

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रावण तू क्यों मरता रहता,

हर वर्ष राम के बाणों से।

क्या कभी विजय मिल पायी है,

झूँठे, पतितों की बाहों से।।

बोला लंकेश नहीं ऐसा,

              हम तो बस डर पैदा करते।

जो होते अधम, आततायी,

                वो नर सारे ऐसे मरते ।।

मिलता सबको उतना ही है,

जितने के होते अधिकारी।

जो होते कुटिल, कुकर्मी हैं,

होता विनाश प्रलयंकारी ।।


                                -प्रो० सत्येन्द्र मोहन सिंह 

महा० ज्यो० फुले रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय

 बरेली, उत्तर प्रदेश 



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