.

सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

नवीनतम

बुधवार, 15 दिसंबर 2021

बीते बचपन

 

कितना सुंदर होता बचपन।

खिल जाता था पूरा तन मन।।

कुत्ते बिल्ली घर पर आते।

चुन्नू मुन्नू साथ खिलाते।।

 

पेड़ो की होती हरियाली।

चढ़ते उस पर डाली-डाली।।

सुंदर दिखते बाग बगीचे।

बैठ खेलते बच्चें नीचे।।

 

बैलो की गाड़ी में चढ़ते।

आगे-आगे सब है बढ़ते।।

खुला-खुला सा होता आंगन।

कितना सुंदर होता बचपन।।


माँ आँगन चूल्हा सुलगाती।

भोजन उसमें रोज पकाती।।

साथ-साथ मिलकर है रहते।

कभी किसी से कुछ ना कहते।।

 

रंग-बिरंगे चिड़िया आती।

चींव-चींव की गीत सुनाती।।

दौड़-दौड़ भौंरा भी आते।

पुष्प रसों को वह पी जाते।।

-प्रिया देवांगन "प्रियू"

कबीरधाम, छत्तीसगढ़


 

 

 

 

सर्वाधिक लोकप्रिय