आज की तारीख में दिखता है
ऐसा मेरा गाँव "
पहले जैसा गाँव कहां
बरगद -पीपल छांव कहां
अलकतरा की सड़क बिछी है
आर- पार, घर -द्वार
गाँव लगे कलदार
बाइक पीछे बल्टा लदकर
जाता दूध बजार
गाय -बैल की गोठ जहां थी
अब ट्रैक्टर- गैराज
लाठ -डांड़ पर कहीं- कहीं है
लिप्टस वाली छांव
आज की तारीख में दिखता है
ऐसा मेरा गाँव
भूत कहां बैताल कहां
कुइयां -पोखर- ताल कहां
मार कुण्डली जमें पड़े हैं
लाल -धुरंधर घाघ
गली दबाओ मेड़ गिराओ
लड़ते जैसे बाघ
गली -कूच के हर नुक्कड़ पर
नेताओं के नाम से गाते
परधानी कर चुके व्यक्ति पर
घोटाले का दाग
जाति- जाति में बढ़ा हुआ है
राजनीति का राग
नदी -ताल में प्लास्टिक तैरे
नहीं तैरती नाव
आज की तारीख में दिखता है
ऐसा मेरा गाँव
बाल काटते पूछा करता
अक्सर हरखू नाऊ
छविनाथ व परशुराम के
भुल्लन मास्टर कहते हैं कि
एक लाख तनख्वाह
आप बताएं बाबू जी कि
रखते कहां संभाल
पैसे वाले मुला रहे हैं
दीया- ढकनी भाव
आज की तारीख में दिखता है
ऐसा मेरा गाँव
बैठे -बैठे जोड़ रहे हैं
किसकी- कितनी आमद
पीने -खाने खातिर कुछ तो
करते खूब खुशामद
साल में कितना खरचा उसका
लगा रहे अनुमान
जहां- तहां वे हैं बघारते
अपनी झूठी शान
लगी हुई है हर सीने में
द्वेष- जलन की आग
जहां- तहां वे घूम रहे हैं
थकते कभी न पांव
आज की तारीख में दिखता है
ऐसा मेरा गाँव
दफ्तर लगे दलाल
'वोट' नहीं हैं घर में जिनके
सच में वे कंगाल
कैसे लंगड़ी मारी जाए
खेल रहे हैं दाव
आज की तारीख में दिखता है
ऐसा मेरा गाँव
-मोती प्रसाद साहू
अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड