नव वधू सी शरद शोभती,
रम्य सुकृत प्रणिता मोहती।
श्वेत चादर बिछा कर धरणी,
स्वागत गान सुनाती हंसिनी।।
कमल कुमिदिनियों भरे तालाब,
भ्रमर- गीत गुंजरित- उल्लास।
नील धवल स्फटिक आकाश,
अमृतमय कौमुदी प्रकाश ।।
झरें व्योम से मोती सम ओस,
स्निग्ध पंखुड़ियों की भरें गोद।
तरुवर बिखराए पल्लव पुष्प,
नीलिमा विषादी हरितिमा रुष्ठ।।
रवि पिंगल गगन निर्मल,
निर्विष करतीं किरणें प्रखर।
शारदीय सोम चन्द्र ज्योत्सना,
पिपली भरी प्यासी अवनी माँ।।
कुमुद मालती कानन शोभित,
श्वेत मराल सम कल्हार सुशोभित ।
दुग्ध -सागर में कर स्नान,
स्वागत शरद का करे संसार।।
-स्वाति सौरभ
भोजपुर, बिहार