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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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बुधवार, 15 दिसंबर 2021

प्रकृति की आवाज़

 सुनो!

ये जो धड़ल्ले से पेडों को,

अंधाधुंध काट रहे हो न तुम!

ये अक्षम्य अपराध है तुम्हारा..

यदि अब भी न रोका अपने क़दमों को,

अवश्यम्भावी है विनाश भी तुम्हारा..

रुको!

प्रकृति ने तो सबकुछ दिया है तुम्हे,

भोजन, वस्त्र, आवास और..

अपना सम्पूर्ण वात्सल्य!

अपने क्षणिक सुख की ख़ातिर,

तहस- नहस करना छोड़ दो इसे..

देखो!

विकास के नाम पर अब तक तुमने,

जहरीली गैसों से वातावरण को दूषित किया!

असह्य शोर, चारों और धुंआ ही धुंआ..

निरीह जानवरों को बेमौत मार डाला,

क्या यही है सभ्य समाज का विकास..

चलो!

प्रकृति माँ से क्षमा माँग कर,

इसकी हरियाली को पुनः लौटा दो..

निरीह जानवरों को यूँ बेघर न करो!

क्योंकि,प्रकृति की गोद में जो सुख है,

वो तुम्हारे कृत्रिम आलीशान महल में कहाँ..

-अनिता सिंह (शिक्षिका)

देवघर, झारखण्ड

 

 

 

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